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फैशन के दिखे वही पुराने रंग

Last Updated- December 05, 2022 | 4:49 PM IST

आज के समय में सबसे ज्यादा तेजी से बदलने वाली कोई चीज है, तो उसका नाम फैशन है। हर दो चार दिनों में एक नया ट्रेंड आता है, फिर अचानक गायब हो जाता है।


 वह तो अपने पीछे किसी तरह का निशना भी नहीं छोड़ता है। लेकिन नई दिल्ली के प्रगति मैदान में हाल ही में खत्म हुए विल्स लाइफस्टाइल फैशन वीक को देखकर कोई भी इस बात को नहीं कह सकता है। इसके लिए तो वक्त तो जैसे ठहर गया है। इस बात से कुछ फैशन विश्लेषक काफी हद तक नाराज थे। वह तो खुलेआम पूछ रहे थे, ‘साल में दो बार फैशन वीक करने की भी जरूरत ही क्या है, जब आप एक ही स्टाइल को बार-बार दिखा रहे हैं?’


सचमुच इस फैशन वीक में तो फैशन की काफी हंसी उड़ाई गई। मजे की बात यह है कि रचनात्मकता की भारी कमी के बावजूद फैशनेबल कपड़ों की डिमांड कम होने का नाम भी नहीं ले रही है। वैसे नए आइडियाज की कमी और मार्केट की मांग को नजरअंदाज करने की डिजाइनरों को मोटी कीमत चुकानी पड़ी। फिर भी, तरुण तहलियानी, रोहित बल, मनीष मल्होत्रा, राजेश प्रताप सिंह पर इसका कोई असल नहीं पड़ा।


 इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि सामसारा और किमाया जैसे भारतीय फैशन रिटेलरों ने इस साल पहले की तरह ही मोटे ऑडर दिए। साथ ही, उम्मीद यह भी है कि वह नए कलेक्शनों की खरीदारी पर काफी पैसे खर्च कर सकती है। वजह यह है कि बड़े फैशन रिटेलर आज कल विस्तार की कोशिश में जुटी हुई हैं। मिसाल के तौर पर प्रदीप हिरानी की ‘किमाया’ को ही ले लीजिए।


यह नए-नए फैशनेबल कपड़ों को बेचने वाली इस फैशन रिटेलर ने अगले तीन साल में 48 स्टोर्स खोलने का लक्ष्य रखा है। इस प्लान का पहला स्टोर इस जून को खुल जाएगा। हिरानी का कहना है कि,’फैशन वीक में पिछले साल की तुलना में इस हमने 170 फीसदी ज्यादा ऑर्डर दिए हैं।’


विश्लेषकों की मानें तो यह कॉमन सेंस है कि जैसे-जैसे फैशन रिटेलरों की तादाद इजाफा होगा, फैशन डिजाइनरों के कपड़े भी खूब बिकेंगे। आखिर इन स्टोरों को भी तो अपना स्टॉक चाहिए, और यह स्टॉक भारी मात्रा में होगा।


वैसे, खरीदारी का सारा सुरूर देसी खरीदारों पर ही चढ़ा है। परदेसियों की नजरें तो हमारे डिजाइनरों के कपड़ों पर टिक ही नहीं रही है। दु्निया के जाने-माने फैशन रिटेलर हेनरी बेंडेल की फैशन कंसल्टेंट फाथिया हबिशी का कहना है कि, ‘अगर आप अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं, तो पहले आपको मौसम का ध्यान रखना पड़ेगा। पश्चिमी देशों की ठंड ही हमारे लिए असल ठंड है।’ हबिशी की बात तो भारत में भी काफी हद तक सही हो सकती है।


 उत्तर भारत में तो दिसंबर महीने में मारे ठंड के लोगों का बुरा हाल हुआ रहता है। फिर भी ज्यादातर फैशन शोज में मॉडलें छोटे-छोटे पोशाकों में कैट वॉक करती दिखती हैं, जो कि बेहद झीने कपड़े से बने होते हैं। यहां बड़ा सवाल यह भी है कि वह कौन सी औरत होगी, जो दिन भर इवनिंग गाउन में घूमती रहेगी। इस फैशन वीक में इन्हीं गाउनों की धूम रही। 


अंतरराष्ट्रीय स्तर की फैशन कंसल्टेंट बेनेडिक्टे ब्रो कहती हैं, ‘आप पहले तो यह बताएं कि भारतीय डिजानर किस ग्राहक को लुभाना चाहते हैं? जो कपड़े वह दिखाते हैं, वह तो एक ऐसी औरत के लिए हैं, जिसका इकलौता मकसद सुंदर दिखना है। आपके डिजाइनर साफ तौर कामकाजी महिलाओं को नहीं लुभाना चाहते हैं। अच्छे कपड़ों का मकसद आपको ताकतवर दिखाना होता है।’


वैसे, अभी तो ऊपर से इस अंतरराष्ट्रीय बेरुखी का असर दिखाई नहीं पड़ रहा है, लेकिन अंदर के तूफान को नजरअंदाज करना बेवकूफी होगी। ब्लूमिंगडेल्स, यूरोप के वाइस प्रेसीडेंट चैंटल रोसियो का कहना है कि, ‘मैं पिछले कुछ समय से ऑटम फैशन वीक में आ रहा हूं, लेकिन सोच रहा हूं इसे बंद कर दूं।


 अगर यह फैशन मार्च में होगा तो इस बात की जरा सी भी उम्मीद नहीं है कि यह कपड़े ठंड की शुरुआत तक पहुंच पाएंगे।’ डिलीवरी की दिक्कत तो है, पर असल मुसीबत तो क्रिएटिविटी की कमी की है।

First Published - March 20, 2008 | 11:19 PM IST

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