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सख्त कदम की दरकार

Last Updated- December 06, 2022 | 1:00 AM IST

महंगाई का वध करने के लिए सरकार ने अपने तरकश के सभी तीर छोड़ दिए हैं। इसके तहत विभिन्न तरह के निर्यातों पर पाबंदी, शुल्कों में कटौती और जमाखोरी रोकने जैसे उपाय शामिल हैं।


इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने बाजार से तरलता के आधिक्य को खत्म करने के लिए भी कदम उठाया है। अब तक मिले सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि इन कदमों से यह संदेश जा रहा है कि महंगाई को सख्ती से काबू में किया जाएगा और यह आधी जंग जीतने जैसा है।


अभी यह देखना बाकी है कि इन कदमों पर संबंधित प्रॉडक्टों की बाजार में क्या प्रतिक्रिया होगी। इन कवायदों के अलावा सरकार इस मामले में खुशकिस्मत रही है कि इस बार रबी फसल की पैदावार अच्छी हुई है। इसके मद्देनजर सरकार द्वारा खरीदे गए अनाज की मात्रा हाल के कई वर्षों के मुकाबले ज्यादा रही है।


हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि सरकार ने इन अनाजों को बाजार में निजी कारोबार से दूर रखा। हालांकि अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण खाद्य सामग्री, मसलन फल व सब्जियां, छोटे अवधि की फसल होती हैं और इस वजह से इनकी कीमतों में अक्सर उतार-चढ़ाव होता रहता है।


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संकेत मिल रहे हैं कि ज्यादातर कमॉडिटीज (दाल जैसे कृषि उत्पाद भी) की कीमतों में बढ़ोतरी का दौर थमने के कगार पर है और अगले 2 साल मे इसमें धीरे-धीरे कमी आ सकती है। हालांकि इसमें पेट्रोलियम अपवाद है, क्योंकि इस बाबत किए जा रहे आकलनों के मद्देनजर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहने के आसार हैं। 


ऐसे में भविष्य को देखते हुए राजकोषीय और अन्य सरकारी खर्चों पर सरकार की रणनीति हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वित्त मंत्री ने मंगलवार को संसद में बताया कि खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम उत्पादों जैसे आइटम पर सब्सिडी को हटाया नहीं जा सकता और जब इस बाबत सब्सिडी की राशि अधिकतम सीमा से ज्यादा हो जाएगी तो सरकार के पास आगामी वर्षों में तेल और उर्वरक बॉन्ड जारी करने के सिवाय कोई चारा नहीं बचेगा।


बहरहाल, सवाल यह है कि सब्सिडी और बॉन्ड जारी करने संबंधी सरकारी नीति क्या टिकाऊ है?तेल की कीमतों और इस बाबत बाजार की उम्मीदों के मुताबिक, इसका जवाब नहीं है। बिजनेस स्टैंडर्ड  ने कुछ दिनों पहले सलाह दी थी कि तेल और उर्वरक कंपनियों की समस्या का हल निकाला जा सकता है, अगर इन कंपनियों द्वारा जारी किए गए बॉन्ड का इस्तेमाल बैंक वैधानिक तरलता जरूरतों को पूरा करने में करें। इससे बॉन्डों की साख बाजार में मजबूत होगी।


दूसरा हल कीमतों का विकल्प हो सकता है। सरकार अगर बहुत सारे खतरों को न्योता नहीं देना चाहती है, तो उसे कीमतों में बढ़ोतरी को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना ही पड़ेगा। हालांकि चुनाव वाले साल में किसी भी सरकार के लिए कीमतों में बढ़ोतरी का ऐलान काफी मुश्किल हो सकता है, लेकिन अगर अर्थव्यवस्था को तबाही वाली आंधी से बचाना है, तो कड़े कदम उठाने ही पड़ेंगे।

First Published - April 30, 2008 | 11:23 PM IST

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