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डिजिटल राह पर तेजी से बढ़ें देश की अदालतें

Last Updated- December 15, 2022 | 8:19 PM IST

कोरोनावायरस ने न्यायपालिका को डिजिटल दुनिया में मजबूती से कदम रखने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसे में अगला सवाल कृत्रिम मेधा (एआई) की प्रगति को बरकरार रखना होगा। सरकार और वैज्ञानिकों ने बताया है कि हमें वायरस के साथ जीना सीखना होगा, इसलिए न्यायपालिका को भी नए हालात के मुताबिक अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करने चाहिए। मगर इसे लेकर कुछ शुरुआती चिंताएं हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने कहा है कि ‘वादी वर्चुअल अदालतों के जरिये न्याय प्राप्त करने में समर्थ नहीं हैं।’ इसने यह भी कहा कि कुछ ऐसी धनी विधि कंपनियां इस कानूनी पेशे पर नियंत्रण की कोशिश कर रही हैं, जो डिजिटल रूप से आगे हैं। बीसीआई ने इनसे मुकाबले के लिए दिल्ली में सामान्य वकीलों की मदद के लिए चार ‘वर्चुअल सुनवाई कक्ष’ बनाए हैं। बार काउंसिल ने मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि नया ढांचा पारदर्शिता एवं खुली अदालतों के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
वादी और आम जनता अपनी परेशानी जाहिर नहीं कर सकती, मगर उन्हें कुछ परेशानियां हैं। वायरस के कारण पैदा भारी अवरोधों से सर्वोच्च न्यायालय और अन्य अदालतों को अपनी परंपरागत गर्मियों की छुट्टियों का एक हिस्सा रद्द  करने को मजबूर होना पड़ा है। यह परंपरा औपनिवेशिक काल की विरासत है। फिर भी इस फैसले को वक्त की दरकार के हिसाब से बड़े त्याग के रूप में देखना मुश्किल है। डॉक्टर, चिकित्साकर्मी, कानून प्रवर्तन प्राधिकरण ऐसे समय लगातार काम कर रहे हैं, जब तापमान 46 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुका है। वे मौजूदा खतरे से लोगों को बचाने के लिए खुद की जान जोखिम में डाल रहे हैं।
ऐसी कोई वजह नजर नहीं आती है कि कानूनी पेशा लंबित मामलों के पहाड़ को खिसकाने में वैसा ही उत्साह क्यों नहीं दिखा सकता। उसने यह पहाड़ भी पिछले दशकों में खुद ही खड़ा किया है। वे शिक्षकों और छात्रों के उदाहरणों का अनुसरण कर सकते हैं, जिन्होंने अपनी छुट्टियां और नियमित स्कूल समय छोड़ दिए हैं। ऑनलाइन तकनीकों की मदद से सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक के समय को न्यायाधीशों और वकीलों की सहूलियत के मुताबिक बदला जा सकता है। ये खुद अपना समय तय कर सकते हैं और सुनवाई की रफ्तार बढ़ा सकते हैं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में 30 न्यायाधीश हैं मगर उनमें से केवल आधों को ही इस संकट की घड़ी में तैनात किया गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय में वीडियो के जरिये सभी न्यायाधीश (36) बैठ रहे हैं। यह तर्क दिया जा सकता है कि इस महामारी से हुए नुकसान की अदालतों की हालात से तुलना नहीं की जा सकती है। हालांकि बीते वर्षों में बहुत से मुख्य न्यायाधीश यह चेतावनी दे चुके हैं कि न्याय व्यवस्था ढह रही है, जिसमें करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं।
अगर यह माना जाए कि हर मामले से पांच पक्ष जुड़े हैं तो तारीख पर तारीख की संस्कृति से पीडि़त लोगों की संख्या 15 करोड़ होगी। इस मानवीय संकट को मापा नहीं जा सकता और न ही यह महामारी की तरह नाटकीय है। मगर यह लोगों को धीरे-धीरे पीड़ा दे रहा है। इससे पीडि़त लोग उन जेलों में बंद हैं, जहां क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं। उनमें से ज्यादातर मुकदमे का इंतजार कर रहे हैं और कुुछ आखिरकार छूट भी सकते हैं।
अदालतों ने घोषणा की है कि वे केवल अत्यंत जरूरी मामलों की ही सुनवाई करेंगी। मगर यह चयन भी व्यक्तिगत राय पर आधारित है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश को पूर्ण अधिकार है। दशकों से जल्द तारीख हासिल करने के लिए मुख्य न्यायाधीश की अदालत में सुबह लंबी कतार लग रही है। इसके बावजूद प्राथमिकताओं में गड़बड़ी होती है। बीसीआई को देश भर से मिली शिकायतों में आरोप लगाया गया है कि अदालतों में प्रभावशाली लोगों के मामलों को छांटकर सुनवाई की जाती है। किसी मीडिया शख्सियत द्वारा अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर दायर याचिका को आम लोगों की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर प्राथमिकता मिल सकती है। इन आम लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ सकता है। हालांकि अदालत ने ई-फाइलिंग के लिए मॉड्यूल विकसित करने की घोषणा की है, मगर बिना मानव हस्तक्षेप के मामलों को सूचीबद्ध करने की एक प्रभावी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। इससे सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार रुकेगा।
अब तक साइबर तकनीक की शुरुआत धीमी रही है, इसलिए अब अदालतों को डिजिटल राह पर तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने एआई की जरूरत को स्वीकार किया है, जो प्रति सेकंड 10 लाख पृष्ठों को पढ़ सकती है। इसलिए इसके फैसले अचूक एवं अंतिम होंगे। ये मानव न्यायाधीशों के उन फैसलों से अलग होंगे, जिन पर कई बार पुनर्विचार किया जाता है। कहा जाता है कि चालकरहित कारों से मानव चालिक कारों की तुलना में कम दुर्घटनाएं होती हैं। इसी तरह भविष्य में ‘न्यायमूर्ति एआई रोबोट’ बेहतर फैसले दे सकता है। इसके अलावा यह राज्यपाल बनने या राज्य सभा का सदस्य बनने की भी इच्छा भी नहीं पालेगा। यह बड़े राजनेताओं से भी प्रभावित नहीं होगा। जब यह लक्ष्य हासिल हो जाएगा तो वादियों को केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह ज्योतिषियों या मंदिरों में नहीं जाना पड़ेगा, जहां अनुकूल फैसलों के लिए न्यायाधीशों के दिमाग को प्रभावित करने का काम देवताओं को सौंपा जाता है।

First Published - June 2, 2020 | 11:25 PM IST

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