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वह शख्स, जिसने भर दी 45 लाख लोगों की जेब

Last Updated- December 05, 2022 | 5:12 PM IST

जल्दी ही 45 लाख से भी ज्यादा सरकारी कर्मचारियों के जेब फिर से गर्म हो जाएगी। यह कमाल है, जस्टिस बेल्लूर नारायणस्वामी श्रीकृष्ण का।


मजे की बात है, लोगों को मालामाल करने वाले इस शख्स के बारे में ज्यादा जानकारी नही है। इस मामले में तो सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक जीवनी भी उनके साथ न्याय नहीं करती। इसमें बस इतना लिखा है, 67 साल का यह शख्स देश में कानून पर सबसे ज्यादा श्रध्दा रखने वालों में से एक है। उनके बारे में वैसे इंटरनेट पर मौजूद फ्री इनसाइक्लोपीडिया, विकीपीडिया में काफी जानकारी मौजूद है।


इसके मुताबिक जस्टिस श्रीकृष्ण एक दर्जन से ज्यादा भाषाएं जानते हैं। उनके पास संस्कृत में मास्टर की डिग्री है। साथ ही, उर्दू में डिप्लोमा भी उनके पास है। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय सौंदर्यशास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री भी ले रखी है। वह देश में पसर्नल कंप्यूटर के शुरुआती इस्तेमालकर्ता में से एक हैं। उन्होंने 1980 में ही कंप्यूटर खरीद लिया था।  साथ ही, उनकी गिनती देश के शुरुआती कंप्यूटर राइटरों में भी होती है।


उन्होंने मुंबई के गवर्नेमेंट लॉ कॉलेज और मुंबई यूनिवर्सिटी से एलएल.बी और एलएल.एम की डिग्री भी ले रखी है। श्रम और औद्योगिक कानूनों यह जानकार जून, 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता बना था। वह 2001 में केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त हुए थे। बाद में, 2002 में वह सुप्रीम कोर्ट में आ गए, जहां उन्होंने जून, 2006 तक अपनी सेवाएं दी थी। अपने काम के लिए समर्पित इस शख्स का नाम देश ने मुंबई में 1992 के दंगों के बाद पहली बार सुना था।


उस वक्त उन्हें दंगों की जांच के लिए नियुक्त एक सदस्यीय जांच आयोग की बागडोर सौंपी गई थी। उन्हें उस मौत के तांडव की जांच और दोषी की पहचान करने में पांच साल लगे और आखिरकार 1998 में उन्होंने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। उस संवेदनशील मामले के बाद उन्होंने छठे वेतन आयोग की बागडोर भी उन्होंने काफी अच्छी से तरह संभाली। 


इस हफ्ते की शुरुआत में वित्त मंत्री पी चिदंबरम को रिपोर्ट सौंपने के बाद उनका सीना तना हुआ था। हो भी क्यों नहीं? उन्होंने 18 महीने की समय सीमा में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी। साथ ही, इसके उन्होंने केवल एक तिहाई आवंटित स्टॉफ और दो तिहाई बजट का इस्तेमाल किया।


अपनी रिपोर्ट मे उन्होंने न केवल ऊंचे पदों पर भारतीय प्रशासानिक सेवा के अधिकारियों को ही तैनात करने की परंपरा को तोड़ने की वकालत की है, बल्कि उनका तो यहां तक कहना है कि सरकार को बाहर से भी लोगों को लेना चाहिए। वैसे इस रिपोर्ट से कई लोग काफी नाराज भी हैं। रक्षा बलों की शिकायत है कि वेतन में इजाफा काफी नहीं है। पेंशन लेने वालों का कहना है कि उनके साथ इसमें मजाक किया गया है। इस रिपोर्ट में तो कई दफ्तरों को बंद करने की भी सिफारिश की गई है।


आयोग का कहना है कि नमक आयुक्त के दफ्तर की जरूरत ही क्या है, जो 3.5 करोड़ रुपए की कमाई देता है, जबकि इसपर 10 करोड़ रुपए का खर्च आता है।  इस रिपोर्ट पर सबसे अच्छे शब्द खुद उन्हीं के मुंह से आए हैं। उनका कहना है, ‘सबसे अच्छा फैसला वो होता है, जिससे सभी नाराज होते हैं।’

First Published - March 28, 2008 | 12:19 AM IST

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