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सामयिक सवाल: सभी निवेशकों का स्वागत करने का सही वक्त

Apple से जुड़ी रोजगार सृजन की कहानी बताती है कि निवेशकों का स्वागत किए जाने की रवायत पहले भी कुछ तरीके से कायम रही है।

Last Updated- April 07, 2024 | 9:03 PM IST
सभी निवेशकों का स्वागत करने का सही वक्त, Time to roll out the red carpet for all investors

अगर Apple जैसा कोई शीर्ष वैश्विक ब्रांड, भारत में रिकॉर्ड स्तर पर रोजगार के मौके तैयार कर सकता है तब बेवजह अधिक समय लगाने वाली ‘लालफीताशाही’की व्यवस्था कायम करने के बजाय इनका स्वागत किए जाने के विचार को और अधिक तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए। अनुमानों से अंदाजा मिलता है कि अगस्त 2021 में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के लागू होने के बाद से भारत में ऐपल उत्पाद के निर्माण से प्रत्यक्ष नौकरियों के कम से कम 150,000 मौके तैयार हुए हैं।

अमेरिका के कूपर्टिनो की यह कंपनी, भारत में कुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अधिक मौके तैयार कर रही है। ऐपल ने इतने कम समय में जितने रोजगार के मौके तैयार किए हैं उतना देश के किसी भी निजी समूह या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने रोजगार के मौके नहीं दिए हैं।

दरअसल, ‘लालफीताशाही’ से ‘लाल कालीन बिछाकर स्वागत करने’ की बदलाव वाली रणनीति 10 साल पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनाव अभियान का एक अभिन्न हिस्सा था जब यह उस वक्त यह मुख्य विपक्षी पार्टी थी। वर्ष 2014 में कई राजनीतिक रैलियों में विदेशी निवेशकों का स्वागत किए जाने के कथ्य पर जोर दिया गया जिस पर दुनिया ने भी ध्यान देना शुरू किया।

वर्ष 2014 में और फिर 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद, भाजपा की थीम भारतीयता से परिपूर्ण थी जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ से लेकर ‘बाई इन इंडिया’ और ‘ट्रैवल इन इंडिया’ जैसी चीजें भी शामिल थीं। फिर भी, ऐपल से जुड़ी रोजगार सृजन की कहानी बताती है कि निवेशकों का स्वागत किए जाने की रवायत पहले भी कुछ तरीके से कायम रही है, हालांकि वैश्विक निवेशकों के लिए यह, सभी क्षेत्रों में समान रूप से नहीं रहा है।

वर्ष 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी, निवेशकों का स्वागत जमकर किए जाने के सिद्धांत के पीछे की प्रेरक शक्ति थे और उन्होंने इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के वैश्विक निवेशक सम्मेलन में भी यह बात दोहराई थी। प्रधानमंत्री ने फरवरी में कहा था कि उत्तर प्रदेश में ‘डबल इंजन’ वाली सरकार के सात वर्षों के दौरान लालफीताशाही की संस्कृति अब निवेशकों की सुगमता के लिए उनका खुलकर स्वागत किए जाने वाली संस्कृति में बदल गई है।

पिछले साल भी जी20 व्यापार और निवेश से जुड़ी एक वर्चुअल मंत्रिस्तरीय बैठक में मोदी ने निवेशकों का स्वागत करने पर जोर दिया। वैश्विक स्तर पर उन्होंने संदेश दिया था कि भारत लालफीताशाही के दौर के बाद अब निवेशकों को आमंत्रित करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है और इसने 2014 से ही देश में ‘बिना किसी बाधा के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के अनुकूल माहौल बनाया है।

उन्होंने इसी बैठक में यह भी बताया कि कैसे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ ने विनिर्माण को प्रोत्साहित किया है। इसके साथ ही उन्होंने जी20 के सदस्य देशों से भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहने के मकसद से एक समावेशी वैश्विक वैल्यू चेन बनाने का आग्रह किया है।

विदेशी निवेशकों का खुले दिल से स्वागत करने और ‘मेक इन इंडिया’ के लिए प्रोत्साहन देने जैसे कदमों के चलते ही ऐपल उत्पादों के निर्माण के साथ ही नौकरियों के मौके बने हैं। लेकिन यह प्रारूप सभी मामलों में कारगर नहीं हो सकता है। बेहतर नतीजे दिखने और गुणवत्ता पूर्ण नौकरियों के मौके तैयार करने के लिए निवेशकों को आमंत्रित करना जरूरी है और इसके लिए सभी क्षेत्रों में बिना किसी आपत्ति और विरोध के विदेशी निवेश नियमों में ढील देना ही रास्ता होना चाहिए।

भारत जैसे-जैसे अपने विनिर्माण को अगले स्तर पर ले जा रहा है और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी), अक्षय ऊर्जा, सेमीकंडक्टर और उच्च-स्तरीय संचार उपकरणों जैसे क्षेत्रों में आक्रामकता से आगे बढ़ रहा है, ऐसे में नीति निर्माताओं को बिना किसी आपत्ति वाली एफडीआई नीति पर विचार करना चाहिए। विचार यह होना चाहिए कि घरेलू स्तर से जुड़ी जटिल नीति में पड़े बिना बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाने की पहल की जाए।

हाल के उदाहरणों से पता चलता है कि भारत की कंपनियों को सेमीकंडक्टर उपकरणों का निर्माण करने के लिए साझेदारी करने की आवश्यकता है क्योंकि इस प्रक्रिया में तकनीकी जानकारी शामिल होती है। टाटा समूह का संयुक्त उद्यम ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन (पीएसएमसी) के साथ है और यह वर्ष 2026 के अंत तक सेमीकॉन चिप का उत्पादन शुरू करेगी।

सेमीकॉन उपकरण आमतौर पर नैनोफैब्रिकेशन प्रक्रिया के जरिये बनाए जाते हैं जो प्रक्रिया शुद्ध क्रिस्टल सिलिकन से बने सब्सट्रेट की सतह पर होती है।

1970 के दशक में अमेरिका की एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी रेडियो कॉर्पोरेशन ऑफ अमेरिका (आरसीए) की शुरुआत के बाद ताइवान ने इस उद्योग में शुरुआती बढ़त हासिल की थी और यह सेमीकंडक्टर तकनीक देने के लिए राजी था जो इस क्षेत्र में सबसे बड़ा था। ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) की सेमीकॉन चिप निर्माण के वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी कम से कम आधी है।

अक्षय ऊर्जा के मामले में भी, भारत बिना साझेदारी और गठबंधन के नहीं चल सकता है। उदाहरण के तौर पर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के आंकड़ों के अनुसार, चीन का दबदबा सौर पैनलों और उनके घटकों के उत्पादन में है और सिर्फ इस देश से ही 75-80 प्रतिशत वैश्विक उत्पादन होता है जिनमें सौर सेल भी शामिल हैं।

ऐसे समय में जब भारत का जोर अक्षय ऊर्जा पर बढ़ रहा है तब इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की चीन और यूरोपीय संघ यानी प्रत्येक पर व्यापार निर्भरता वर्ष 2023 में 1.2 प्रतिशत तक बढ़ी है। लेकिन इतना काफी नहीं है। ये आंकड़े और भी अधिक बढ़ने चाहिए, चाहे यह ताइवान, चीन या किसी अन्य देश के साथ व्यापार हो और चाहे वह ईवी, सौर पैनल, सेमीकॉन चिप या मोबाइल फोन के लिए ही क्यों न हो।

ऐपल को देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला तंत्र तैयार करने से पहले भारत में सुगम नियामकीय माहौल के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ा। भारत को विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र दोनों में कई और रोजगार के मौके तैयार करने वालों की आवश्यकता है। इसके लिए सभी निवेशकों के लिए बिना किसी बाधा और आपत्ति के आमंत्रित करने की राह तैयार की
जानी चाहिए।

First Published - April 7, 2024 | 9:03 PM IST

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