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हल्दी-मखाना बोर्ड: नई पहल, बड़ी चुनौतियां

सरकार ने हल्दी और मखाना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नए बोर्ड बनाने की घोषणा की, लेकिन गुणवत्ता सुधार, निर्यात विस्तार और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी बड़ी बाधा बनी हुई है।

Last Updated- February 21, 2025 | 11:22 PM IST

देश को बहु उपयोगी मसाले हल्दी का वैश्विक केंद्र बनाने के इरादे से राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड शुरू करने के महज दो हफ्ते बाद सरकार ने मखाना बोर्ड बनाने का प्रस्ताव भी रख दिया है। मखाना अभी तक तो हाशिये पर रहा था मगर पानी में होने वाली इस फसल को दुनिया भर में सुपरफूड के तौर पर लोकप्रियता मिल रही है। सरकार ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में इसके लिए बोर्ड बनाने का प्रस्ताव दिया है। इन दो नए बोर्डों के साथ देश में कमोडिटी बोर्ड की संख्या सात हो जाती है। कॉफी, चाय, रबर, तंबाकू और मसालों के बोर्ड पहले से हैं।

इन सांविधिक मगर स्वायत्त संस्थाओं का प्राथमिक जिम्मा इन जिंसों के उत्पादन, कटाई के बाद इनके प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन, मार्केटिंग और निर्यात को बढ़ावा देना है। वे उत्पादों की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए तथा व्यापार मेलों, क्रेता-विक्रेता बैठक और विकास की दूसरी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए उत्पादकों एवं अन्य भागीदारों को तकनीकी जानकारी तथा वित्तीय सहायता भी मुहैया कराते हैं। इन बोर्डों का अभी तक का कामकाज पूरी तरह बेदाग नहीं रहा है मगर अपनी-अपनी कमोडिटी के क्षेत्र का विकास करने में उनकी भूमिका साफ नजर आती है।

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (इक्रियर) ने हल्दी बोर्ड की स्थापना के ठीक एक दिन बाद हल्दी पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की और अनुमान लगाया कि 2023-24 में 22.6 करोड़ डॉलर रहने वाला उसका निर्यात 2030 तक बढ़कर 1 अरब डॉलर हो सकता है। रसोई में रोजाना इस्तेमाल होने वाले इस मसाले का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक भारत ही है। यह मसाला अपने औषधीय गुणों के लिहाज से भी अहम है। दुनिया में 70 फीसदी हल्दी उत्पादन भारत में ही होता है और इसके अंतरराष्ट्रीय व्यापार में देश की 62 फीसदी हिस्सेदारी है।

हल्दी बारहमासी पौधा है, जो अदरक के परिवार (जिंजिबरेसी) का है। जमीन के नीचे मिलने वाली इसकी गांठों को सुखाकर हल्दी पाउडर बनाया जाता है, जो खास तरह के पीले रंग का होता है। सब्जी-सालन आदि का रंग इससे बहुत निखर जाता है। इसका उपयोग प्राकृतिक रंग, दवा और त्वचा की औषधि के रूप में भी किया जाता है। पके हुए भोजन और व्यंजनों के छौंक या बघार के लिए भी इसे इस्तेमाल में लाते हैं। इस पौधे की उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय दक्षिण एशिया में मानी जाती है, जहां भारत, चीन और जापान आते हैं। अब इसकी खेती ताइवान, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, पेरू, वेस्टइंडीज और अफ्रीकी देशों में भी होने लगी है।

किंतु भारतीय हल्दी उद्योग को नए उत्पादकों विशेष तौर पर फिजी, नीदरलैंड और जर्मनी से होड़ मिल रही है। ये देश हल्दी के बेहतर गुणवत्ता वाले मूल्यवर्द्धित उत्पाद पेश कर रहे हैं। भारत को इनसे टक्कर लेते हुए विश्व बाजार में आ रहे नए मौकों का फायदा उठाने के लिए कमर कसनी चाहिए। नए बोर्ड में संबंधित मंत्रालयों के अधिकारियों के अलावा हल्दी उत्पादकों और निर्यातकों के प्रतिनिधि भी होंगे। इस बोर्ड को फसलों की उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और निर्यात के नए ठिकाने तलाशने के लिए अच्छी रणनीति तैयार करनी होगी।

भारतीय हल्दी के लिए गुणवत्ता बड़ी समस्या है। देश में हल्दी की करीब 30 किस्में पाई जाती हैं, जिनकी अलग-अलग विशेषता होती हैं। इनमें से अधिकतर में करक्यूमिन की मात्रा कम होती है। हल्दी में औषधीय गुण या त्वचा के विकार दूर करने की क्षमता इसी के कारण आती है। मेघालय में ज्यादा उगने वाली ‘लाकादोंग हल्दी’ में 6.8 से 7.8 फीसदी तक करक्यूमिन होता है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर है। हल्दी वाले औषधीय और सौंदर्य उत्पाद बनाने वाले ज्यादातर निर्माता कच्चा माल विदेश से मंगाते हैं। इस कारण भारत अग्रणी उत्पादक देश होने के बाद भी अमेरिका के बाद हल्दी का दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है।

मखाने की बात करें तो उसका वैश्विक बाजार अभी बमुश्किल 12.5 करोड़ डॉलर का है, जो स्वास्थ्य को इससे होने वाले फायदे पता लगने के बाद तेजी से बढ़ रहा है। विटामिन बी, प्रोटीन और फाइबर का समृद्ध स्रोत होने तथा वसा कम होने के कारण मखाना फिटनेस पर ध्यान देने वालों का पसंदीदा नाश्ता बनता जा रहा है। महामारी के दौरान रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाले एजेंट के रूप में भी इसका सेवन बहुत बढ़ गया।

मखाने को कमलगट्टा भी कहा जाता है, जो पोखर-तालाब और ठहरे हुए पानी में खुद उगने वाली कांटेदार जलकुंभी का बीज होता है। मगर इसे हल्का कुरकुरा और नाश्ते में इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए प्रसंस्करण करना होता है। भारत में इसका सेवन सब्जी, मीठे दलिये और अन्य कई लोकप्रिय व्यंजनों के रूप में किया जाता है।

देश में करीब 90 फीसदी मखाना बिहार में पैदा होता है। इसमें भी दरभंगा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और मधुबनी इसके खास उत्पादक जिले हैं। इधर असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा ओडिशा में भी इसकी खेती होने लगी है। लेकिन देश-विदेश में बढ़ी मांग का बिहार में मखाना किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है क्योंकि वहां प्रसंस्करण की पर्याप्त सुविधाएं और मार्केटिंग के कुशल माध्यम नहीं हैं।

बिहार में होने वाला ज्यादातर मखाना प्रसंस्करण और दूसरे कामों के लिए अन्य राज्यों को चला जाता है। इसलिए बिहार में प्रस्तावित मखाना बोर्ड को न केवल बेहतर उत्पादन तकनीक लानी होगी बल्कि कटाई के बाद मूल्य श्रृंखला भी तैयार करनी होगी। मखाना और हल्दी बोर्डों का प्रदर्शन अंत में इसी से आंका जाएगा कि उनकी नीतियों और कार्यक्रमों का इन क्षेत्रों के व्यापक विकास पर क्या असर पड़ता है।

First Published - February 21, 2025 | 10:42 PM IST

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