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अनिश्चितता का भंवर

Last Updated- December 06, 2022 | 12:00 AM IST

हम अनिश्चितता की दुनिया में जीते हैं। तेल की कीमत किसी दिन 100 डॉलर प्रति बैरल होती है, दूसरे दिन यह घटकर 90 डॉलर हो जाती है और तीसरे दिन 115 डॉलर।


कुछ लोग इसके 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की भी भविष्यवाणी कर रहे हैं। इस बात को बीते हुए बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब ओपेक की राय में तेल का आदर्श प्राइस बैंड 28 डॉलर हुआ करता था।


सीमेंट की कीमतें भी उफान पर हैं, हालांकि अगले कुछ महीनों में इसकी कीमतों में भारी कमी देखने को मिल सकती है, क्योंकि सीमेंट के उत्पादन में 4 करोड़ टन की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। स्टील की कीमत भी अपने शीर्ष पर है। महज 3 महीने के अंदर शेयर बाजार 21 हजार से लुढ़ककर 13,500 तक पहुंच गया।


महज 2 साल में सॉफ्टवेयर कंपनियों के ग्रोथ में 35 से 50 फीसदी की कमी देखने को मिली है। पिछले साल अगर आप शेयर, रीयल एस्टेट या सोना खरीदने के बजाय चावल खरीदते तो यह संपत्ति के लिहाज से बेहतर होता। चावल- इस पर जरा गौर से सोचिए।


अभी जो शब्द सबसे ज्यादा चल रहा है, वह है उतारचढ़ाव। सवाल यह है कि इससे कैसे निपटा जाए? अगर अगले 3 महीने में शेयरों का कारोबार (आय भी) दोगुना या आधा हो जाए तो शेयर ब्रोकिंग फर्मों के लिए बिजनेस रणनीति का क्या मतलब है? अगर किसी कंपनी के कच्चे माल की कीमत में 3 महीने में 30 फीसदी की कमी या बढ़ोतरी होती है, तो उसके सालाना बिजनेस प्लान का क्या वैधता है?


या आपके घर की किस्त (ईमआई) 6 महीने में इतनी बढ़ जाती है कि आपके घरेलू बजट के लिए नाममात्र के बराबर राशि बचे (जैसा कि लाखों होम लोन धारकों के साथ हुआ है) तो आप क्या करेंगे?


रतन टाटा ने दूसरी वैश्विक परिस्थिति के संदर्भ में लैंड रोवर और जगुआर को खरीदने का फैसला किया था, लेकिन डील होते वक्त उन्हें वित्तीय बाजार की बिल्कुल अलग स्थिति का सामना करना पड़ा। हालांकि, वह ऐसी स्थितियों से निपटने में सक्षम हैं। बहरहाल वह तो ऐसी परिस्थिति से निपटने में सक्षम हैं, लेकिन जरा दूसरी कंपनियों के बारे में सोचिए, जिनके प्रोजेक्ट्स अधर में लटके पड़े हैं। वित्तीय बाजार की खराब हालत की वजह से उन्हें बाजार में शेयर जारी करने की योजना टालनी पड़ी।


फर्ज कीजिए कि हिमालय से निकलेवाली नदियों में जल सूख जाए तो गंगा के मैदानी इलाकों का क्या होगा? यह शायद इतना भयंकर होगा,जिसे बयां नहीं किया जा सकता। बहरहाल हमें भयावहता को बयां करने के अलावा इससे बचने के उपायों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। यह ऐसा वक्त है, जब किसी शख्स, संगठन या कंपनी की (बुनियाद है कमजोर या मजबूत) की अग्निपरीक्षा होनी है। हम जानते हैं कि बूम का दौर खत्म हो चुका है, लेकिन क्या हमें यह पता है कि इसके बाद क्या होगा?  

First Published - April 25, 2008 | 11:20 PM IST

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