facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

पंजाब में आप की प्रचंड जीत और इसके मायने

Last Updated- December 11, 2022 | 8:49 PM IST

पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की बढ़ती लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं थी। मगर पार्टी को राज्य विधानसभा चुनाव में इतनी प्रचंड जीत मिलेगी इसकी उम्मीद शायद ही किसी को होगी। वह इतनी सफल रही है कि हास्य कलाकार से राजनीतिज्ञ बने एवं पंजाब के अगले मुख्यमंत्री भगवंत मान भी हैरान हैं। आप ने पंजाब के तीनों क्षेत्रों-दोआब, मालवा और माझा में शानदार प्रदर्शन किया है और वह कर दिखाया है जो 1966 में पंजाब के पुनर्र्गठन के बाद अब तक कोई दल नहीं कर पाया था। आजादी के बाद से कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब पर शासन किया है मगर इन दोनों दलों को हार का सामना करना पड़ा है। हालत है कि अकाली दल लगातार दूसरी बार मुख्य विपक्ष भी नहीं रह पाएगा।
पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र की प्राध्यापक  पंपा मुखर्जी कहती हैं, ‘यह चुनाव परिणाम राज्य में एक नई पार्टी के सत्ता में आने से अधिक मौजूदा दो दलों के वर्चस्व की समाप्ति का बिगुल है। राज्य के लोग जाति, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से ऊब गए थे और पिछले कई वर्षों से बदलाव की तैयारी कर रहे थे। 2017 में आप को यह मौका नहीं मिल पाया था और पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी।’
मान को आगे करने के निर्णय से पंजाब में आप की स्वीकार्यकता बढ़ गई। इससे पहले आप को बाहरी राजनीतिक दल के तौर पर देखे जाने का डर सता रहा था। सांसद बनने से पहले मान हास्य कलाकार थे और इस वजह से लोगों में लोकप्रिय थे। जब मान को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया तो विपक्षी दलों ने शराब के साथ उनका नाम जोड़कर मखौल बनाया। मगर राज्य में यह मुद्दा नहीं चला और लोगों ने उनके स्थानीय होने पर जोर दिया।
केजरीवाल का ‘दिल्ली मॉडल’ भी लोगों को आकर्षित करने में कामयाब रहा। राज्य में प्रत्येक वयस्क महिला को 1,000 रुपये प्रति महीना और प्रत्येक परिवार के लिए 300 यूनिट नि:शुल्क बिजली देने के चुनावी वादों ने भी मदद की। आप के  घोषणापत्र में दिल्ली के मोहल्ला क्लिीनिक के तौर पर ग्राम क्लिनिक खोलने, पंजाब के सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने और अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज जैसे वादे भी लोगों को भाए। राजनीतिक विश्लेषक आशुतोष कुमार कहते हैं, ‘नतीजों में स्पष्ट रूप से पंजाबी खुंदक दिखाई पड़ती है। लोग दशकों से राज्य की खस्ता हालत के लिए सत्तारूढ़ नेताओं को सबक सिखाना चाहते थे।’
राज्य में लगभग सभी बड़े कद्दावर नेता आप के नौसिखियों से चुनाव हार गए हैं। प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल क्रमश: लंबी और जलालाबाद से पराजित हुए हैं। किसी ने सोचा तक नहीं था कि अमरिंदर सिंह पटियाला से चुनाव हार जाएंगे। नवजोत सिंह सिद्धू को भी उनके विधानसभा क्षेत्र अमृतसर पूर्व से शिकस्त मिली। निवर्तमान मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब और भाडौर दोनों जगहों से हार गए हैं। कांग्रेस के एक और बड़़े नेता मनप्रीत बादल को बठिंडा शहरी में करारी हार का सामना करना पड़ा। ये सभी नेता आप के उम्मीदवार के हाथों परास्त हुए हैं।
आप पहली बार दिल्ली के बाद किसी दूसरे राज्य में सरकार बनाने जा रही है। पंजाब के नतीजे कांगे्रस और अकाली दल दोनों के लिए खतरे की घंटी हैं। अकाली दल ने किसानों के आंदोलन का राजनीतिक लाभ लेने के लिए भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। दूसरी तरफ प्रियंका गांधी वाड्रा का सक्रिय चुनाव अभियान भी बेनतीजा साबित हुआ है। कांग्रेस ने दलित समुदाय के चन्नी को आगे कर नया दांव खेला था।
कांग्रेस के लिए रही-सही कसर नवजोत सिंह सिद्धू ने पूरी कर दी। चंडीगढ़ स्थित विकास एवं संवाद संस्थान के निदेशक प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘पंजाब के इतिहास में यह अहम बदलाव है। अकाली दल चुनाव में सबकुछ गंवा चुका है और अब उसके पास पंथ से जुड़े एजेंडे की तरफ लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।’ बादल को अब यह निर्णय लेना है कि उन्हें ‘सिख के लिए पंजाब’ का नारा फिर मजबूत करना है या दूसरे समुदायों से भी संबंध जोडऩा है। इस चुनाव के बाद पंजाब की राजनीति हमेशा के लिए बदल चुकी है। जहां तक केजरीवाल और उनके सहयोगियों की बात है तो यह चुनाव उनकी पार्टी और उनक सरकार की विश्वसनीयता के लिए एक बड़ा पड़ाव है। आप एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के करीब आ गई है। पार्टी अब हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में भी अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है। अगले वर्ष गुजरात के साथ हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव होंगे। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए किसी दल के  पास चार सांसद और चार राज्यों में विधानसभा या राज्यसभा चुनाव में कुल मतों में कम से कम चार प्रतिशत मत होने चाहिए। लोकसभा में आप के चार सांसद हैं। हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मान सांसद पद से इस्तीफा दे देंगे मगर आप रिक्त हुई इस सीट से अपना प्रतिनिधि भेजने की पूरी कोशिश करेगी। आप गोवा में कुल मतों में सात प्रतिशत लेने में सफल रही है। अब इसे मात्र एक और राज्य में छह प्रतिशत मत हासिल करना है। केजरीवाल ने चुनाव से पहले जो वादे किए थे उन्हें पूरा करना मान के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। दिल्ली वित्तीय रूप से सुदृढ़ है मगर पंजाब की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। चुनाव पूर्व किए गए कई वादे पूरे करने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत होगी। वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य पर अनुमानित 2.82 लाख करोड़ रुपये कर्ज था। पिछले पांच वर्षों के दौरान राज्य पर अतिरिक्त 1 लाख करोड़ रुपये का बोझ आ गया था क्योंकि तत्कालीन अमरिंदर सिंह सरकार ने राज्य के किसानों को ऋण माफ करने के अलावा कई दूसरी रियायतें दी थीं। पंजाब प्रत्येक वर्ष अपने कुल राजस्व का आधा हिस्सा कर्ज भुगतान पर खर्च करता है।

First Published - March 10, 2022 | 10:59 PM IST

संबंधित पोस्ट