टू-स्ट्रोक इंजन वाले ऑटो और 15 साल पुराने वाहनों को 31 जुलाई तक बंद करने के उच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने में पश्चिम बंगाल सरकार को मुश्किल हो रही है।
पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने दावा किया है कि सरकार इस मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रही है और इसीलिए अब शहर के वातावरण में खतरनाक गैसों की मौजूदगी में तेजी से इजाफा हुआ है।
सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने बताया कोलकाता में कुल 2,000 किलोमीटर लंबी सड़क है , जो शहर के कुल क्षेत्र का लगभग 6 फ ीसदी ही है। जबकि दिल्ली में लगभग 31,000 किलोमीटर लंबी सड़क ही है।
ऐसे में कोलकाता में बेहतर सड़क यातायात तंत्र की स्थापना करना काफी आसान होता। लेकिन सरकार के गैर-जिम्मेदारान रवैये से शहर में प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
कोलकाता के शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार शहर के लगभग 54 फीसदी लोग सार्वजनिक यातायात, 4 फीसदी ऑटो और बाकी लोग और यातायात साधनों का इस्तेमाल करते हैं। साल 2007 में कोलकाता में 4,526 बसें थी, यानी 1 लाख लोगों के लिए 8 बसें । वहीं दूसरी और दिल्ली में 1 लाख लोगों के लिए 78 बसें हैं।
सुनीता ने कहा, ‘मुझे समझ में नहीं आ रहा कि सार्वजनिक यातायात को और बेहतर क्यों नहीं बनाया जा रहा है। कम लागत में ट्राम को और बेहतर बनाया जा सकता है, लेकिन सरकार ऐसा करने के बजाय उसे बंद कर कारों की संख्या बढ़ाने में लगी हुई है।’
दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता लगा है कि कोलकाता के पर्यावरण में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा औसतन 1.4 फीसदी की दर से बढ़ रही है। शहर में निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से वायु प्रदूषण भी काफी तेजी से बढ़ातरी हो रही है।