मध्य प्रदेश की मौजूदा सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, जबकि उद्योगों को लगता है कि इस समय ऐसे किसी विधेयक की जरुरत ही नहीं थी।
राज्य सरकार अभी तक 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों के जमीन आवंटन, पानी और अन्य सुविधाओं से जुड़े लगभग सभी मसलों पर चर्चा कर चुकी है। ऐसे में उद्यमियों को किसी नए विधेयक से अधिक उम्मीद नहीं है।
‘मध्य प्रदेश निवेश प्रोत्साहन विधेयक 2008’ के नाम से तैयार इस विधेयक को अगले महीने की 7 तारीख से शुरू हो रहे विधान सभा सत्र के दौरान पटल पर रखा जाएगा। उद्योग और सरकारी सूत्रों ने बताया है कि विधेयक को पेश किया जाएगा। इस विधेयक से राज्य औद्योगिक विकास निगम को समाप्त करने का रास्ता साफ हो जाएगा और अपेक्षाकृत कमजोर एजेंसी ‘मध्य प्रदेश व्यापार और प्रोत्साहन निगम (एमपीटीआरआईएफएसी)’ को आधिकारिक स्वरूप दिया जाएगा। इस एजेंसी का गठन जमीन, पानी और अन्य राहत तथा पुनर्वास से जुड़े मसलों के हल के लिए किया गया था।
मध्य प्रदेश व्यापार और प्रोत्साहन निगम का गठन 2004 में किया गया था। निगम का काम उद्योग विभाग, राजस्व विभाग, ऊर्जा विभाग, वन विभाग, जल संसाधन और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ तालमेल स्थापित करना था। मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा तैयार इस कवायद का मकसद उद्योगों को एक स्थान पर सभी मंजूरियां हासिल करने में मदद करना था। मजेदार बात यह है कि निगम के पास जमीन, पानी और बिजली की उपलब्धता की जानकारी मांगने का कोई कोई अधिकार नहीं है।
ऐसे में यदि कोई निवेशक किसी खास जगह पर ढांचागत सुविधाओं के बारे में जानना चाहता है तो निगम के सामने बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो जाती है। उद्योग विभाग के एक सूत्र ने बताया कि ‘इस एजेंसी के शीर्ष कार्यपालक निचले दर्जे के अधिकारी हैं, जिन्हें प्रधान सचिव के साथ मिलकर काम करना पड़ता है। इससे निवेशकों को काफी दिक्कत होती है। इस विधेयक की जरुरत तब है जब निकाय का गठन हो जाए। सभी निवेश प्रस्तावों पर पहले ही चर्चा हो चुकी है तो विधेयक पेश करने का कोई अर्थ नहीं है।’
राज्य सरकार ने वर्षों पुराने जमीन आवंटन नियमों को आसान बनाने और कराधान तथा बिजली की दरों को तर्क संगत बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। सूत्रों ने बताया है कि मध्य प्रदेश व्यापार और प्रोत्साहन निगम को अधिक अधिकार देने के लिए विकास कार्य बल के गठन का प्रस्ताव किया गया था। निगम के क्षेत्रीय कार्यालय की स्थापना का प्रस्ताव भी था। उद्योग संघों ने स्थानीय निकायों से अगल औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना, छोटे उद्योगों के लिए मॉडल कलस्टर बनाने, नए भूमि आवंटन नियम, निर्यातोन्मुख इकाइयों के लिए लचीले श्रम कानून और निजी क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने जैसे सुझाव दिए हैं।
इन उद्योग संघों में सीआईआई, फिक्की और मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ शामिल हैं। एक उद्योग संघ के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि ‘मानसून पहले ही आ चुका है और राज्य की भाजपा सरकार का कार्यकाल खत्म होने वाला है। ऐसे में किसी संशोधन या नए विधेयक का क्या अर्थ है? एजेंसी को आधिकारिक स्वरूप दिया जा रहा है ताकि राज्य सरकार मौजूदा संगठन एमपीएसआईडीसी को खत्म कर सके।’