मंदी के दौर में शिक्षण संस्थानों में प्लेसमेंट घट रहा है और ऐसे छात्र जिनकी कुछ समय पहले नौकरी लगी थी उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है।
इससे शिक्षण संस्थान और छात्र तो परेशान हैं ही, साथ ही इसका दर्द बैंकों को भी हो रहा है। दरअसल, नौकरी न लगने या फिर नौकरी खोने से भले ही बैंकों का सीधा सरोकार न हो पर बैंकों ने ऐसे छात्रों को पढ़ाई के लिए जो कर्ज दे रखा था, अब उन्हें उसकी वसूली में परेशानी आ रही है।
इसे मंदी की देन ही कहेंगे कि पिछले छह महीनों में बैंकों में ऋण वापसी के सबसे बड़े डिफॉल्टर ऐसे पेशेवर और छात्र ही बनकर उभरे हैं। एक तो बैंक पिछली दो तिमाहियों से खुद ही नकदी की किल्लत से जूझ रहे थे, ऊपर से अब डिफॉल्टरों की बढ़ती संख्या ने उनके सामने एक नई परेशानी खड़ी कर दी है।
बैंकों ने अब ऐसे कर्ज की वसूली के लिए विशेष वसूली टीमें गठित की हैं जो डिफॉल्टरों के खिलाफ कानूनी कदम उठाने पर विचार कर रही है। भारतीय स्टेट बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि कानपुर में बैंक ने पिछले छह महीनों में 800 कर्जदारों को डिफॉल्टर घोषित किया है। ऐसे लोगों को एसबीआई ने करीब 37 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था।
एसबीआई रिकवरी सेल के मुख्य प्रबंधक डी के अग्रवाल ने बताया, ‘जो कर्जदार लगातार तीन महीनों से किश्त नहीं चुका पाए हैं उन्हें हमने कानूनी नोटिस भेजा है। डिफॉल्टर इस बारे में अपना स्पष्टीकरण भेज सकता है।’
इलाहाबाद बैंक के कार्यकारी निदेशक एस के दुआ मानते हैं कि मंदी की वजह से कर्ज की वसूली पर खासा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में अधिकांश डिफॉल्टर शिक्षा ऋणों के ही सामने आ रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार करीब 2.5 करोड़ रुपये का कर्ज अटका पड़ा है, जिसे लौटाया नहीं गया है और इनमें से 1,648 डिफॉल्टर शिक्षा ऋणों के हैं। दुआ बताते हैं कि किसी कर्जधारक को अगर लगता है कि बैंक की ओर से ऋण वापसी का जो आदेश जारी किया गया है वह सही नहीं है तो वह सबसे पहले बैंक के संयुक्त रजिस्ट्रार से संपर्क कर सकता है। इसके बाद मामले को उच्च न्यायालय में भी ले जाया जा सकता है।
इधर कर्जधारकों की शिकायत है कि सरकार ने उद्योगों के लिए राहत पैकेजों की घोषणा करने में तो दरियादिली दिखाई है पर कर्ज की वसूली के लिए वह कोई पुख्ता कदम नहीं उठा रही है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव सुरेश भट्ट ने बताया, ‘नौकरी का बाजार ठंडा चल रहा है और ऐसे में जो छात्र शिक्षा ऋण को नहीं चुका पा रहे हैं उनके लिए जल्द से जल्द वित्तीय पैकेज की घोषणा करने की जरूरत है।’
इधर दुआ का कहना है कि बैंक इस स्थिति में नहीं हैं कि ऐसे पेशेवरों के करोड़ों रुपये का ऋण माफ कर सकें। उन्होंने कहा कि अगर छात्र इस स्थिति में नहीं हैं कि वह कर्ज लौटा सकें तो ऐसे में गारंटर या फिर रिश्तेदारों को कर्ज लौटाने की व्यवस्था करनी चाहिए।