पंजाब और हरियाणा में 100 से भी अधिक बस बॉडी निर्माता कर के अत्यधिक बोझ के कारण पड़ोसी राज्य राजस्थान के उद्यमियों से पिछड़ते जा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर उद्यमी लघु एवं मझोले उद्यम (एसएमई) क्षेत्र में आते हैं। पंजाब और हरियाणा बस बॉडी निर्माताओं से 12.5 फीसदी का मूल्यवर्धित कर (वैट) वसूलते हैं जबकि राजस्थान में यह कर 4 फीसदी है। राजस्थान की तुलना में 8.5 फीसदी अधिक कर वसूले जाने से पंजाब और हरियाणा में इस उद्योग पर बोझ बढ़ गया है। इन राज्यों में बस बॉडी निर्माताओं के व्यवसाय में सालाना 15-20 फीसदी की कमी दर्ज की जा
रही है।
लालरू (पंजाब) में स्थित प्रमुख बस बॉडी निर्माता कंपनी जेसीबीएल लिमिटेड के उपाध्यक्ष एस. एस. ग्रेवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंजाब और हरियाणा कर में बड़ा अंतर होने की वजह से अपना व्यवसाय राजस्थान के हाथों गंवा जा रहे हैं। जहां राजस्थान बस बॉडी बिल्डरों से महज 4 फीसदी का वैट वसूलता है वहीं पंजाब और हरियाणा इसे 12.5 फीसदी की दर से वसूलते हैं। कर में बड़ा अंतर होने से बस बॉडी निर्माताओं को राजस्थान की कंपनियों से मुकाबला करने में कठिनाई हो रही है।’
जेसीबीएल टीयूवी द्वारा आईएसओ 9001 और टीएस 16949 जैसे कड़े गुणवत्ता मानकों के पालन के लिए विश्वस्तरीय मोबिलिटी सॉल्युशन मुहैया करा रही है। 1989 में स्थापित जेसीबीएल उच्च गुणवत्ता वाली लक्जरी बसों, कोच वाहनों, मोबाइल होम, स्कूल बस और एम्बुलेंस आदि के निर्माण के लिए प्रख्यात है। मांग के बारे में बात करते हुए ग्रेवाल ने कहा, ‘फिलहाल भारत में नई बसों की मांग 65,000 प्रति वर्ष है और इसमें 12-13 फीसदी की दर से इजाफा हो रहा है। अगले दो–तीन साल में यह मांग बढ़ कर 100,000 बस सालाना हो जाने की संभावना है।’ स्वामी कोचेज ऐंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रदीप मित्तल ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘कर विसंगतियों के कारण इस कारोबार में औसत रूप से सालाना 15-20 फीसदी की कमी आ रही है। हमें राजस्थान की कंपनियों के साथ मुकाबला करने में कठिनाई पैदा हो रही है। हमें ऐसे समय में इस कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है जब सरकार ने बसों के लिए टेंडर जारी किया है।’ हिसार की नवजीवन मोटर वर्कशॉप के निदेशक बूटा सिंह भी इस तथ्य से सहमत हैं कि कर में भेदभाव के कारण पंजाब और हरियाणा में यह कारोबार प्रभावित हो रहा है।
इस उद्योग के जानकारों का कहना है कि पंजाब और हरियाणा में उच्च कर ढांचे की वजह से लागत में इजाफा हुआ है और यही स्थिति बनी रही तो जल्द ही बस बॉडी निर्माण में लगी ये लघु इकाइयां इस व्यवसाय से बाहर हो जाएंगी। पंजाब में 6-8 बड़ी बस बॉडी निर्माण इकाइयां हैं जिनमें जालंधर की सतलज मोटर्स लिमिटेड (एसएमएल), जेसीबीएल, अमर कोचेज, एचएमएम लिमिटेड जैसी कंपनियां प्रमुख रूप से शामिल हैं। इनके अलावा यहां तकरीबन 100 छोटी इकाइयां हैं।
जालंधर की एसएमएल ने भारतीय बाजार के लिए बस बॉडी बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बस निर्माता कंपनी मर्सिडीज बेंज के साथ एक करार किया है। एसएमएल लेक्सिया मोटर्स कंपनी के अधीन भी स्वतंत्र से रूप से बसों का निर्माण करती है। दूसरी तरफ विश्लेषकों ने यह भविष्यवाणी भी की है कि देश में ऑटोमोटिव इंडस्ट्रियल स्टैंडर्ड (एआईएस) के कार्यान्वयन के साथ आने वाले वर्षों में बस निर्माण उद्योग एक बड़े सुधार का गवाह बन सकता है। ऐसी छोटी और गैर–पेशेवर कंपनियां इस व्यवसाय से बाहर हो जाएंगी जो गुणवत्ता को लेकर कम सतर्क हैं। एआईएस को 1 अप्रैल, 2009 से लागू किया जाएगा। इसके बाद बस बॉडी निर्माताओं को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का पालना करना अनिवार्य हो जाएगा।