मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में करीब 3 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र के रखरखाव के लिए योजना आयोग से अधिक क्षतिपूर्ति की मांग की है।
राज्य के वन मंत्री विजय शाह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘मध्य प्रदेश के वन क्षेत्र में प्रति 150 पेड़ एक व्यक्ति है। इस कारण इतने बड़े वन क्षेत्र का प्रबंधन राज्य सरकार के लिए काफी कठिन होता जा रहा है। योजना आयोग मध्य प्रदेश में वन भूमि के विकास के लिए प्रति वर्ष 23 करोड़ रुपये देता है।’ उन्होंने कहा कि ‘देश की कुल वन भूमि में हमारी हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है। इतने बड़े वन क्षेत्र के रखरखाव के लिए हमें अधिक जमीन की जरुरत है।’
भारतीय वन सर्वेक्षण के एक अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश में कुल वन भूमि 76,429 वर्ग किलोमीटर है। इनमें से 24.79 प्रतिशत जमीनी क्षेत्र है जबकि घने वनों की हिस्सेदारी 13.57 प्रतिशत है। खुले वन क्षेत्र की हिस्सेदारी 11.22 प्रतिशत है। मंत्री ने आगे बताया कि राज्य के कुल 55 हजार गांवों में से 20 हजार वन क्षेत्र में हैं और कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है।
राज्य सरकार के लिए इन लोगों का आमदनी का वैकल्पिक जरिया मुहैया करना काफी मुश्किल है। इसलिए योजना आयोग को राज्य के आवंटन को बढ़ाना चाहिए। इस समय राज्य सरकार को वनों से 500 करोड़ रुपये की आमदनी होती है।
इस समय राज्य में संयुक्त वन प्रबंधन प्रणाली है। इसमें 15,000 स्थानीय वन समितियां शामिल हैं। ये समितियां वनों की देखभाल करती हैं और बदले में लकड़ी की बिक्री से होने वाली आय में 10 प्रतिशत लाभांश और बांस की बिक्री से होने वाली आय में 20 प्रतिशत लाभांश इन वन समितियों को दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि ‘वर्ष 2001 और 2005 के दौरान हमने लाभांश के तौर पर 42 करोड़ रुपये दिए हैं। इसके अलावा राज्य तेंदू पत्ता जमा करने वालों को भी लाभांश देता है। इस साल तेंदू पत्ते का बोनस 450 रुपये प्रति स्टैंडर्ड बैग से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है। राज्य सरकार को लाभांश के तौर पर करीब 100 करोड़ रुपये चुकाने पड़ रहे हैं।’