दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की नई निजी साझेदारी योजना को लेकर शहरी विकास मंत्रालय में चर्चा गर्म है।
इस योजना का विकास 27,628 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर किया जाएगा जो कि पूरी दिल्ली का 19 प्रतिशत है। मास्टर प्लॉन 2021 की अधिसूचना जारी होने के बाद डीडीए को यह जमीन हासिल हो सकी है और उम्मीद जताई जा रही है कि इस जमीन के विकास में निजी साझेदार को शामिल किया जाएगा।
लेकिन सूत्रों का कहना है कि डीडीए दिल्ली में जमीन के मालिकाना हक के लिहाज से अपनी अग्रणी स्थिति को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। सूत्रों ने बताया कि ‘1950 में डीडीए की स्थापना दिल्लीवासियों को रियल एस्टेट सटोरियों से बचाने और वाजिब कीमतों पर अच्छी गुणवत्ता वाले मकान उपलब्ध कराना था। दीगर बात है कि पिछले 15 वर्षो के दौरान ऐसा नहीं हो सका है।
दिल्ली में आवासीय मकानों की 66 प्रतिशत और वाणिज्यिक स्थानों की 84 प्रतिशत कमी है।’ डीडीए ने जमीन अधिग्रहण कानून 1894 के तहत जमीन का अधिग्रहण किया और बाद में नीलामी के जरिए अधिकतम बोलीदाता को भूखंडों का आवंटन कर दिया गया।
सूत्रों ने आगे बताया कि इस तरह सिर्फ डीडीए को कमाई हुई। न तो सरकारी दर पर जमीन बेचने वाले जमीन मालिकों, निजी बोलीदाताओं और न ही अंतिम उपभोक्ता को कोई फायदा मिल सका। शहरी विकास मंत्रालय में अधिकारियों को उम्मीद है कि निजी भागीदारी की निजी से इस ढर्रे में बदलाव आएगा और निजी रियल एस्टेट समूहों को जमीन अधिग्रहण की अनुमति मिल सकेगी।
हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हो सका है और नीतिगत पत्र में स्पष्ट तौर से कहा गया है कि कानूनी तौर पर दिल्ली में डीडीए को मुख्य जमीन अधिग्रहण का अधिकार कायम रहेगा। मंत्रालय ने इस नीति को लेकर तीन मुख्य समस्याओं को उठाया है। नई योजना के तहत बड़े स्तर पर जमीन का अधिग्रहण करना है। यह निजी क्षेत्र की कंपनी के लिए संभव नहीं है और बड़ी संख्या में विस्थापन से विरोध भी बढ़ेगा।
मौजूदा नियमों के तहत 50 प्रतिशत जमीन का आवासीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल का प्रावधान है जबकि शेष हरित क्षेत्र, वाणिज्यिक और सामुदायिक परिसर का विकास किया जा सकता है। इस आवासीय जमीन में से 20 हेक्टेयर पैकेट को डीडीए ने आवसीय पैकेट घोषित किया है। इस तरह कुल जमीन में आवासीय जमीन की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत होगी।
निजी क्षेत्र की कंपनियों को केवल शहरी विकास मंत्रालय की मंजूरी मिलने के बाद ही आवासीय जमीन का वाणिज्यिक कार्यो के लिए इस्तेमाल की अनुमति होगी। निजी कंपनियों को लाइसेंस शुल्क देने के लिए कहा जा सकता है जो मोटे तौर पर प्रति एकड़ जमीन के लिए 6.75 करोड़ रुपये होगा। मंत्रालय ने ऐसे भारी-भरकम शुल्क का विरोध किया है।