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चारधाम रेल की डगर है कठिन

Last Updated- December 11, 2022 | 6:40 PM IST

रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने फैसला किया है कि उसे बड़े पैमाने पर भूगर्भीय चुनौतियों के बावजूद बदरीनाथ के लिए प्रस्तावित रेल लाइन पर आगे बढऩा चाहिए। हालांकि 73,000 करोड़ रुपये की लागत वाली चार धाम रेल परियोजना की क्रियान्वयन एजेंसी इसके प्रस्तावित अंतिम स्टेशन जोशीमठ से लगभग 35 किलोमीटर पहले पीपलकोटी में इस रेल-लाइन को समाप्त करना चाहती है।
बदरीनाथ चारधाम परियोजना का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है जिसके तहत चार हिंदू धार्मिक स्थलों गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ को जोडऩे का प्रयास करने की योजना है। तीर्थयात्रियों को मदद देने के अलावा बदरीनाथ रेल लाइन भारतीय सेना को चीन सीमा तक तेजी से पहुंचाने में मदद कर सकती है, विशेष रूप से भारत के आखिरी गांव माणा की महत्त्वपूर्ण सीमा चौकी तक।
पीपलकोटी में रेल लाइन को समाप्त करने का मतलब होगा कि सेना को सड़क मार्ग से चीन सीमा तक जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी जबकि अगर रेल लाइन जोशीमठ तक पहुंचती तब इसमें कम समय लग सकता था। तीर्थयात्रियों को भी बदरीनाथ में मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से दो घंटे का अतिरिक्त सफर तय करना होगा। भारतीय रेलवे से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने ईमेल के जरिये कुछ सवालों के जवाब मांगे जिनका कोई जवाब नहीं मिल पाया।
बदरीनाथ की तरफ जाने वाला मार्ग केदारनाथ को जोडऩे का अहम बिंदु है और दरअसल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग लाइन का विस्तार है। निर्माणाधीन लाइन को सैकोट तक बढ़ाया जाना है जहां से इसे दो अलग-अलग दिशाओं में जाना था। एक रास्ता सोनप्रयाग की ओर मुडऩा था जो केदारनाथ धाम के लिए आखिरी पड़ाव होता लेकिन आरवीएनएल इस रेल लाइन को नहीं बनाना चाहती है। सैकोट से दूसरी लाइन बदरीनाथ की ओर जाएगी।
आरवीएनएल ने 2014 में एक जमीनी सर्वेक्षण शुरू किया जिसमें कहा गया था कि रेलवे लाइन को जोशीमठ तक ले जाया जा सकता है और इसके लिए 1:80 अलाइनमेंट का इस्तेमाल कर 1,733 मीटर की ऊंचाई पर एक स्टेशन बनाना पड़ता जो शहर की तुलना में कम ऊंचाई है। 2018 में शुरू किए गए एक अंतिम लोकेशन सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया था कि जोशीमठ में स्टेशन को 1,654 मीटर की ऊंचाई पर और नीचे बनाया जाए। इस रिपोर्ट को हाल में जमा किया गया है।
हालांकि आरवीएनएल ने पाया कि जोशीमठ तक रेल लाइन ले जाना व्यवहारिक नहींं होगा। इसकी एक बड़ी बाधा यह है कि यह रणनीतिक रेलवे लाइन सेना के मकसद को पूरा नहीं कर पाएगी। इसमें जिन बाधाओं का जिक्र किया गया उसमें यह बात प्रमुखता से उठाई गई कि यह थी कि यहां ‘रक्षा सुविधाओं के लिए पर्याप्त खुला क्षेत्र’ नहीं है। अपर्याप्त स्थान का मतलब यह भी है कि रेलवे अपनी खुद की माल गाडिय़ों और वैगन डिपो को बनाए रखने में सक्षम नहीं होगा।

First Published - May 28, 2022 | 12:09 AM IST

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