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हवा से बिजली बनाएगा घड़ी समूह

Last Updated- December 10, 2022 | 6:33 PM IST

डिटजर्ट और फुटवियर के कारोबार में पकड़ बनाने के बाद कानपुर की घड़ी ग्रुप ऑफ कंपनीज की नजरें अब पवन ऊर्जा के क्षेत्र में है।
समूह पहले ही कर्नाटक और गुजरात में 6 और 10 मेगावाट क्षमता वाली ऊर्जा इकाइयां लगा चुका है। हालांकि इसके विस्तार के लिए समूह मंदी के बादलों के छंटने का इंतजार कर रहा है।
समूह के प्रवक्ता इनिश रॉय ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि समूह आने वाले वर्षों में अक्षय ऊर्जा उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की योजना बना रहा है।
उन्होंने कहा, ‘पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं और यह पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ साथ सस्ता भी है। साथ ही सरकार पवन ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करने वालों को कर में छूट भी देती है।’
देश को बिजली की गंभीर समस्या से गुजरना पड़ रहा है और अगर समय रहते अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन की समुचित व्यवस्था नहीं की जाती है तो आने वाले सालों में यह संकट और गहरा सकता है।
भारत में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन में सालाना 25 फीसदी की ही बढ़ोतरी हो रही है जबकि चीन में यह विकास दर 127 फीसदी, फ्रांस में 57 फीसदी और अमेरिका में 45 फीसदी है।
रॉय ने कहा कि भारत में पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है उससे उत्पादन क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है। उन्होंने बताया कि क्षमता के बेहतर इस्तेमाल के लिए ही एनरकॉन के साथ गठजोड़ किया गया है ताकि उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया जा सके।
पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने में भारत का स्थान विश्व में चौथा है। देश में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से करीब 12,403 मेगावॉट बिजली पैदा की जाती है जिसमें से 70 फीसदी हवा से ही होती है।
पश्चिमी देशों में पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन के लिए ‘मैगलेव टरबाइन तकनीक’ का इस्तेमाल किया जाता है जिसे मैगलेव इंडस्ट्रीज ने तैयार किया था। इस पीढ़ी के टरबाइन 1.5 मीटर प्रति सेकंड की धीमी रफ्तार वाले पवन से भी बिजली तैयार कर सकती है।
वहीं अगर हवा की रफ्तार 40 मीटर प्रति सेकंड भी हो तो भी यह टरबाइन आसानी से काम कर लेता है जबकि दूसरे टरबाइन इसके बीच की गति होने पर ही ऊर्जा का उत्पादन कर पाते हैं। 
विशेषज्ञों के अनुसार इस तकनीक के इस्तेमाल से ऊर्जा उत्पादन की क्षमता 20 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ ही परिचालन खर्च भी 50 फीसदी से अधिक तक घट जाता है। मैगलेव का यह दावा है कि ये टरबाइन 500 साल तक काम कर सकते हैं।

First Published - February 27, 2009 | 9:10 PM IST

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