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रंग बरसे, हर साल 15 प्रतिशत की दर से

Last Updated- December 05, 2022 | 4:48 PM IST

उत्तर प्रदेश में कई करोड़ रुपये के रंगों का वर्ष दर वर्ष 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस बाजार में हर्बल गुलाल जैसे त्वचा के लिए सुरक्षित उत्पादों की हिस्सेदारी भी मजबूत हो रही है।


 होली के रंग बनाने वाली इकाइयां मुख्यत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हैं। इसके अलावा कुछ इकाइयां कानपुर और मथुरा में भी हैं। हाथरस होली और अन्य त्यौहारों के दौरान देश के अन्य हिस्सों की मांग को भी पूरा करता है।भारत मानक ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उत्तर प्रदेश का रंग उद्योग असंगठित है और यहां गुणवत्ता नियंत्रण और निगरानी की व्यवस्था काफी कम है।


 ज्यादातर इकाइयां सस्ते कच्चे माल से बने सिंथेटिक रंगों को ही बेचती हैं। दूसरी ओर लोगों में सुरक्षित रंगों को लेकर जागरुकता बढ़ रही है। इस कारण हाल के दिनों में हार्बल गुलाल की मांग काफी बढ़ी है। हर्बल गुलाल पर्यावरण के अनुकूल है और बाजार में मुख्यत: चार रंगों पीला, गुलाबी, चंदन और हरे रंग में मौजूद है। इन रंगों में क्रमश: चमेली, गुलाब, चंदन और खस की महक होती है।


हाथरस स्थित रंग रसायन व्यापार मंडल के सचिव अशोक वार्ष्णेय ने बताया कि गुलाल सहित होली के रंगों की बिक्री में प्रति वर्ष 10 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। व्यापार मंडल में करीब 20 सदस्य पंजीकृत हैं और उनका कुल कारोबार सात करोड़ रुपये का है।


होली के रंगों के लिए बेस पाउडर आंघ्र प्रदेश से आता है। इसके बाद मिश्रण तैयार करने के लिए स्टार्च, रंग रोगन और पानी को मिलाया जाता है। इसके बाद मिश्रण को सुखाया जाता है और इसका पाउडर तैयार कर लिया जाता है। इस पाउडर को एक बार फिर सुखाया जाता है और इत्र मिलाया जाता है। हाथरस स्थित शक्ति इंटरप्राइजेज के देवेन्द्र कुमार गोयल ने बताया कि इस साल हमने एक अन्य स्थानीय इकाई से खुले हर्बल गुलाल की खरीद की है और इसकी पैकिंग करके बेच रहे हैं।


 त्वचा विशेषज्ञों के मुताबिक सिंथेटिक रंग काफी नुकासनदेह हैं और इनसे आंख खराब होने, त्वचा छिलने और सरदर्द जैसी शिकायतें आ सकती हैं। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टॉक्सीकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के इन परेशानियों के अलावा बनावटी रंगों से कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकतीं हैं।


वार्ष्णेय ने हालांकि साफ किया कि हाथरस स्थिति इकाइयां सुरक्षित रंग तैयार करतीं हैं। इन्हें तैयार करने के लिए स्टार्च और कार्न फ्लोर जैसे हानिरहित बेस पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस रंग बालू और मिट्टी से बने रंग त्चचा के लिए हानिकारक होते हैं। प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर में करीब 5 इकाइयां होली के रंग तैयार करती हैं।


 गोल्डी मसाला समूह के सुरेन्द्र गोल्डी ने बताया कि उनकी विनिर्माण फैक्ट्री में प्रतिदिन 125  किलो गुलाल तैयार किया जा रहा है और उत्पादन 22 मार्च तक जारी रहेगा। गोल्डी ने बताया कि इस साल हर्बल गुलाल की मांग काफी अच्छी है। इस गुलाल का परीक्षण कंपनी की अपने प्रयोगशाला में किया जाता है।


होली में बिकने वाले ज्यादातर रंग कपड़ा, कागज और चमड़े जैसे गैर जिंस की सिंथेटिक डाई से बने होते हैं। कुछ कारोबारी सस्ते रंग तैयार करने के लिए गेहूं का आटा, स्टार्च जैसे बेस मेटेरियरल में केमिकल डाई की मिलावट कर देते हैं। कई बार रंग में लेड और कैडमियम भी पाए जाते हैं।


 ये पदार्थ आंखों और त्वचा के लिए तो नुकसानदेह हैं ही, साथ ही कई बार अस्थमा जैसी बीमारियों की वजह भी बन जाते हैं। सिंथेटिक डाई बनाने के लिए रोडेमियम-बी (गुलाबी या लाल), मीथाईल (बैंगनी) और औरेमाईन (पीला) जैसे केमिकल मिलाए जाते हैं।

First Published - March 20, 2008 | 9:48 PM IST

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