उत्तर प्रदेश की सत्ता को लेकर गर्मजोशी वाली लड़ाई गुरुवार 10 फरवरी को शुरू हो रही है जिसमें सात चरणों में से पहले चरण का मतदान मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होगा। पहले चरण में 58 सीट पर मतदान होगा जिनमें से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2017 में 53 सीट जीती थीं। चारों प्रमुख राष्ट्रीय दलों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस की किस्मत दांव पर है। हालांकि राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) जैसे छोटे दल भी चुनावी दंगल में हाथ आजमा रहे हैं।
पहले चरण में कुछ दिलचस्प मुकाबला होने वाला है। नौ विधानसभा क्षेत्रों वाले आगरा जिले में पहले चरण में चुनाव होना है जहां 21 प्रतिशत दलित आबादी है और यहां मुकाबला काफी कड़ा है। कुल 34.61 लाख मतदाताओं में से आगरा में पांच वर्षों में 2.17 लाख मतदाताओं की वृद्धि हुई है। 38,640 मतदाता पहली बार मतदान करेंगे जिनमें से 18,000 से अधिक महिला मतदाता और 20,000 से अधिक पुरुष मतदाता हैं। 2017 में सभी नौ निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने सीटें जीती थीं।
इस बार सपा कड़ी टक्कर दे रही है। बसपा नेता मायावती ने आगरा से अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य इलाकों में भी मुकाबला उतना ही चुनौतीपूर्ण है। गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर (दिल्ली के बाहरी इलाके में नोएडा के रूप में जाना जाता है) में भी मतदान होगा। गाजियाबाद में लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद और मोदीनगर निर्वाचन क्षेत्र और धौलाना का कुछ हिस्सा शामिल है जो हापुड़ जिले में है।
यह ऊर्जा राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह का संसदीय क्षेत्र है। जिले में पहली बार मतदान करने वाले 30,000 से अधिक मतदाता हैं। लेकिन सत्तारूढ़ दल भाजपा को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ सरकार के एक मंत्री, अतुल गर्ग का मुकाबला पूर्व भाजपा नेता और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा इकाई के उपाध्यक्ष रहे के के शुक्ला से है जो हाल में बसपा में शामिल हो गए जब भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। गर्ग ने 2017 में बसपा के सुरेश बंसल को लगभग 70,000 वोटों से हराकर भाजपा के लिए यह सीट जीती थी जिसे एक विधानसभा सीट के लिए एक बड़ा अंतर माना जाता था। हालांकि, इस बार उनके लिए यह मुकाबला कठिन होता जा रहा है। बसपा का इस क्षेत्र में प्रभुत्व का लंबा इतिहास रहा है। इस सीट पर 5 लाख से अधिक मतदाता हैं जिनमें से लगभग 40,000 जाटव हैं और 50,000 से अधिक मुस्लिम हैं। 2012 में इस सीट पर बसपा ने जीत दर्ज की थी।
मेरठ जिले में सात निर्वाचन क्षेत्र हैं और उन सभी सीटों के लिए मतदान होगा। भाजपा ने तीन विधायकों की जगह नए चेहरों को उतारा है जबकि चार विधायक फिर से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं जिनमें से विवादास्पद विधायक संगीत सोम का नाम भी शामिल है। भाजपा को उम्मीद है कि सात निर्वाचन क्षेत्रों पर उसकी जीत होगी। सपा और राष्ट्रीय लोकदल का मानना है कि मेरठ क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण क्षेत्र किसानों के विरोध प्रदर्शन से प्रभावित होकर उनके पक्ष में मतदान करेंगे। चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख का मानना है कि किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा से छिटक रहे क्षेत्रों को पार्टी ने कानून और व्यवस्था के सरल मुद्दे पर एकजुट कर दिया है। मेरठ में उनके द्वारा किए गए किए गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि रात्रि में कहीं सुरक्षित आने-जाने के मुद्दे को लेकर महिला मतदाता विशेष रूप से भाजपा के पक्ष में दिखती हैं। हालांकि यह मुद्दा, शहरी क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में मजबूती से जाएगा जिसमें बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर भाजपा द्वारा किए गए सभी काम शामिल हैं और पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कृषि क्षेत्र से संबंधित जो वादे किए हैं उससे भी ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी को मदद मिलेगी। मेरठ और आसपास के क्षेत्र, पहले चरण के चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में एक निर्णायक कारक होंगे, खासतौर पर भाजपा के लिए।