दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की हाउसिंग स्कीम-2008 में घोटाला हुआ है, अब इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है।
गत सोमवार को डीडीए की आयुक्त अस्मा जहांगीर ने संवाददाता सम्मेलन में इस बात का दावा किया कि हाउसिंग स्कीम के तहत मकानों के आवंटन में किसी प्रकार का कोई घालमेल नहीं किया गया है। लेकिन इस बात को शहरी विकास मंत्रालय और उनके ही वरिष्ठ अधिकारी नहीं पचा पाए।
और डीडीए के उपाध्यक्ष अशोक निगम ने एक आंतरिक जांच कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी ने अपनी तफ्तीश शुरू कर दी है और उम्मीद की जा रही है कि शुक्रवार या शनिवार तक कमेटी अपनी रिपोर्ट दे देगी।
इस बात की भी संभावना जाहिर की जा रही है कि मकान नहीं पाने वाले लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए डीडीए की यह कोई सोची-समझी चाल हो।
क्यों हो रहा है हो-हल्ला
डीडीए ने शहरी विकास मंत्रालय को एक पत्र लिख यह मंशा जाहिर किया है कि आरक्षित कोटे के तहत मकान लेने वाले अगर उसे बेचना चाहे तो उन्हें अपने ही कोटे के व्यक्ति को बेचना होगा।
यानी कि अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत मकान पाने वाला व्यक्ति अनुसूचित जनजाति के ही किसी व्यक्ति को मकान बेच सकता है। अगर इस बात की मंजूरी मिल जाती है तो अनुसूचित जाति व जनजाति के कोटे के तहत घपला करने वालों को कोई फायदा नहीं होगा।
लिहाजा उन्हें यह बात पच नहीं रही है। अब तक के नियम के मुताबिक आरक्षित कोटे के तहत मकान लेने वाला उम्मीदवार किसी भी जाति या कोटे के व्यक्ति के हाथ मकान की बिक्री कर सकता है। इसका फायदा ही हमेशा डीडीए के मकानों के आवंटन के दौरान प्रॉपर्टी डीलरों ने उठाया।
एक डीलर ने नाम नहीं छापने की शर्त बताया कि दिल्ली में एक भी व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का नहीं है। फिर भी उसके नाम का कोटा रखा गया है। ऐसे में प्रॉपर्टी बाजार के खिलाड़ी प्रणाली में व्याप्त खामियों का फायदा तो उठाएंगे ही। इस बार मीडिया की निगाह इस सूची पर पड़ गयी तो इतना हो-हल्ला मच गया।
वे कहते हैं कि इससे पहले आरक्षित कोटे के तहत जो मकान आवंटित किए गए, उनमें कौन रह रहा है या वह मकान अब किसके नाम है, इसकी जांच करने पर और बड़े घोटाले का पर्दाफाश हो सकता है।
क्यों गठित हुई जांच कमेटी
डीडीए ने गत सोमवार को इस बात का खुद ही खुलासा किया कि वर्ष 2006 के दौरान मकान आवंटन के दौरान 300 से अधिक लोगों के दस्तावेज गलत पाए गए। यानी कि पहले भी इस प्रकार के मामले सामने आ चुके हैं।
डीडीए ने कहा कि आवंटन के दौरान ही दस्तावेज या फार्म की जांच की जाती है। तो फिर 110 लोगों को फार्म को आवंटन से पहले कैसे रद्द कर दिया गया। डीडीए ने इस बात को खुद ही स्वीकार किया है कि 1300-1400 फार्म विभिन्न परिवार के सदस्यों के पाए गए।
यानी कि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक ही परिवार के कई सदस्यों ने मकान के लिए आवेदन किए। इस बात को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि जिनके नाम से पहले से दिल्ली में मकान है और उसे या उसकी पत्नी को इस हाउसिंग स्कीम के तहत भी मकान मिल जाता है तो इसकी जांच कैसे होगी।
नियम के मुताबिक जिन लोगों को मकान का आवंटन हुआ है कि उन्हें सिर्फ एक शपथ पत्र देना है कि उनके या उनकी पत्नी के नाम से कोई मकान या जमीन दिल्ली में नहीं है। लेकिन क्या इस बात की जांच शपथ पत्र बनाने वाला करेगा या फिर डीडीए मकान देने से पहले आवंटियों की प्रॉपर्टी की छानबीन करेगा।
राजनीतिक कारण
लोग इस बात की भी संभावना जाहिर कर रहे हैं कि सिर पर चुनाव है और सरकार ऐसे में अपने वोट बैंक का पूरा ख्याल रखना चाहेगी। जिन लोगों को मकान नहीं मिला है उनकी संख्या 5.5 लाख से अधिक है तो जिन्हें मकान आवंटित हुआ है उनकी संख्या महज 5238 है।
लाजिमी है कि सरकार 5.5 लाख लोगों की संतुष्टि का ख्याल पहले रखेगी। इसी मंशा के तहत डीडीए ने एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया है। ऐसे में मकान आवंटन की जारी सूची को रद्द कर फिर से लकी ड्रा निकाला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।