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बिहार में दीपंकर ने दिखाया चुनावी जीत का दमखम

Last Updated- December 14, 2022 | 9:16 PM IST

दीपंकर भट्टाचार्य को देश के शीर्ष कम्युनिस्ट नेताओं में शुमार किया जाता है। वह अपनी पार्टी के कार्यालयों से बाहर जनता के बीच रहते हैं और अपनी बात रखने के लिए हिंदी, अंग्रेजी या बांग्ला के बेहद आसान शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
भट्टाचार्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव, या प्रमुख हैं, जिसे आमतौर पर भाकपा-माले या केवल माले के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए जिनमें से 12 में जीत हासिल हुई और तीन सीटों पर बहुत कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा। यह बिहार चुनाव में किसी अन्य राजनीतिक दल से काफी बेहतर प्रदर्शन था। इस शानदार प्रदर्शन के बाद भट्टाचार्य तथा माले को लेकर लोगों के बीच उत्सुकता बढ़ गई है। अपनी सीटों पर जीतने से भी ज्यादा अहम बात यह है कि माले ने पूरे बिहार चुनाव के लिए ‘एजेंडा’ निर्धारित किया, जिसमें आजीविका के मुद्दों पर राजनीतिक चर्चा शामिल रही। इसके कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव की सोशल मीडिया सफलता को सार्वजनिक सभाओं में भी बरकरार करने में अहम योगदान किया।
59 साल के भट्टाचार्य भारत में वामपंथी आंदोलन के नेताओं में सबसे युवा हैं। बिहार में माले की सफलता ने अतीत में वामपंथियों की जीत की उस कल्पना को पुनर्जीवित किया है, जिसमें वामपंथी दल (मुख्यत: भाकपा)  चुनाव परिणाम में अहम भूमिका निभाते थे। कॉमरेड वीएम के नाम से मशहूर विनोद मिश्रा के निधन के बाद वर्ष 1998 में 38 वर्ष की उम्र में भट्टाचार्य को पार्टी का प्रमुख चुना गया था। हालांकि इस दौरान संगठन के भीतर कुछ नाराजगी थी, लेकिन वीएम द्वारा उनको चुने जाने के कारण यह बदलाव हो गया। भट्टाचार्य कम उम्र से ही पार्टी की जिला समिति की बैठकों में बैठते थे। उन्होंने देश में युवा नेताओं की एक पीढ़ी को तैयार किया, जिससे माले को पिछले कुछ दशकों में विश्वविद्यालय परिसरों में विस्तार करने में मदद मिली जबकि दूसरे वामपंथी दल प्रतिभाशाली युवाओं को आकर्षित करने और उन्हें बनाए रखने के लिए संघर्ष करते दिखे। इस समय पार्टी की 75-सदस्यीय केंद्रीय समिति में कम से कम आधा दर्जन सदस्य ऐसे हैं जिनकी आयु 30 वर्ष से कम हैं तो वहीं 15 सदस्य 30-40 वर्ष उम्र के हैं। वर्ष 1992 में माले जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी जब भट्टाचार्य या ‘कॉमरेड दीपंकर’ जन आंदोलनों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे।
भट्टाचार्य का जन्म गुवाहाटी में 5 जनवरी, 1961 को हुआ था। वास्तव में उनका जन्म दिसंबर 1960 में हुआ था, लेकिन उनके परिवार में किसी व्यक्ति को सही तारीख नहीं पता। उनके पिता भारतीय रेलवे में टिकट क्लर्क थे। उनके सहयोगियों का कहना है कि भट्टाचार्य के परिवार का कोई करीबी व्यक्ति वामपंथी राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं था। उनके पिता ने युवा भट्टाचार्य को प्रगतिशील साहित्य उपलब्ध कराया। जब भट्टाचार्य कोलकाता के भारतीय सांख्यिकी संस्थान से एमस्टैट पूरा करने के बाद माले में शामिल हुए तो उनके पिता ने कहा कि शायद उन्होंने अपने बेटे को अच्छा साहित्य उपलब्ध नहीं कराया, जिसके कारण उनका बेटा अंत में एक कम्युनिस्ट बना। किशोरावस्था में भट्टाचार्य कोलकाता चले गए और रामकृष्ण मिशन विद्यालय नरेंद्रपुर में दाखिला लिया।
पुरानी बातों को याद करने वाले बताते हैं कि माले तथा राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन कारगर नहीं रहा। सीवान के पूर्व राजद पार्टी सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष चंद्रशेखर प्रसाद सहित माले के कम से कम 15 लोगों की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। बिहार में पार्टी ने संघर्ष के बाद बहुत कुछ हासिल किया है।

First Published - November 15, 2020 | 11:05 PM IST

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