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इस्पात कीमतों पर काबू के लिए नियामक की मांग

Last Updated- December 10, 2022 | 5:27 PM IST

इस्पात की कीमतों में तेजी से हुई बढ़ोतरी पर चिंता जाहिर करते हुए पंजाब के उद्योग संघों ने कीमतों पर तत्काल नियंत्रण के लिए एक नियामक का गठन करने की मांग की है। 


उद्यमियों ने सरकार और इस्पात कंपनियों के बीच सांठगांठ का आरोप भी लगाया है। पंजाब के एक उद्योगपति ने कहा कि ‘इस्पात की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए एक नियामक की तत्काल स्थापना की जानी चाहिए और कच्चे इस्पात के निर्यात पर तुंरत प्रतिबंद्ध लगा देना चाहिए।’


उन्होंने कहा कि कीमतों पर नियंत्रण के लिए चीन में ऐसा ही किया गया है। उन्होंने हाल में प्रधानमंत्री के साथ इस मुद्दे पर हुई बैठक को ‘गैर-गंभीर’ बताया। इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के क्षेत्रीय अध्यक्ष एस सी राघवा ने बताया कि ‘प्रधानमंत्री ने इस मामले में अपनी असहायता प्रदर्शित की है।’ उन्होंने कहा कि राज्य के हैंड टूल विनिर्माता हाल में जर्मनी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में खरीदारों से कोई भी आर्डर पाने में असफल रहे हैं।


इसकी वजह देश में इस्पात की भारी कीमतों का होना है। भारत में तैयार हैंडटूल, साइकिल और आटो उत्पाद चीन के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक महंगे हैं। दीगर बात है कि चीन भारत जैसे देशों से कच्चे लौह अयस्क का आयात करता है।


एसोसिएशन आफ इंडियन फार्गिंग इंडस्ट्रीज (एआईएफआई) के प्रतिनिधि और जीएनए इंटरप्राइजेज के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जगदीश सिंह ने कहा कि ‘चीन दुनिया के इस्पात बाजार पर कब्जा कर रहा है और इसकी चुभन हम तक पहुंचनी शुरू हो गई है। पिछले दो महीनों के दौरान इस्पात की कीमतों में करीब 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है।


इस कारण हमारे उत्पाद भी दो महीने में चीन के मुकाबले करीब 15 प्रतिशत महंगे हो गए हैं।’ उन्होंने कहा कि इस समय इस्पात के निर्यात को प्रतिबंधित करना बेहद जरूरी हो गया है। इससे पहले देशी कारोबार को  बचाने के लिए ताईवान, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अजेंटाइना भी ऐसे उपायों को अपना चुके हैं।


इस्पात के निर्यात पर रोक लगाने की मांग


इस्पात की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी को कारण आम आदमी से लेकर उद्यमी सभी परेशान है। इस्पात की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एसोसिएशन ऑफ इंडियन फार्गिंग इंडस्ट्री (एआईएफआई) ने केन्द्र सरकार ने कहा है कि इस्पात के निर्यात पर तत्काल प्रतिबंद्ध लगा देना चाहिए या फिर चीन, ताईवान, कोरिया और जापान की तर्ज पर इस्पात पर निर्यात लेवी लगा दी जानी चाहिए।


एआईएफआई के प्रतिनिधि जगदीश सिंह ने कहा कि पिछले दो महीनों के दौरान भारत में इस्पात की कीमतों 33 प्रतिशत चढ़ चुकी हैं। इस कारण और इस्पात पर आधारित उद्योग घरेलू बाजार में और निर्यात के मोर्चे पर तेजी से बाजार खो रहे हैं।


उल्लेखनीय है कि फार्गिंग उद्योग में कुल कच्ची लागत में इस्पात की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक है। कास्टिंग में पिग आयरन और स्टील स्कै्रप मुख्य कच्चे माल हैं। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि साईकिल, हैंडटूल और फाउंड्री संघों ने केन्द्र सरकार ने विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भारतीय उद्योगों की मदद करने की अपील की है।


एआईएफआई के मुताबिक इस्पात का बढ़ता निर्यात कीमतों में इजाफे के लिए मुख्य तौर से जिम्मेदार है और इसके चलते भारत इस्पात के मूल्य वर्धन के लिहास से निचले पायदान पर बना हुआ है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर चीन तैयार मॉल के निर्यात को बढ़ावा दे रहा है और वहां कच्चे माल के निर्यात पर 25 प्रतिशत की लेवी लगाई गई है। उन्होंने कहा कि भारत में भी इस नीति को अपनाना चाहिए।

First Published - April 8, 2008 | 10:32 PM IST

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