मध्य प्रदेश में राज्यव्यापी क्षेत्रीय नेटवर्क (एसडब्ल्यूएएन) परियोजना के लिए 172 करोड़ रुपये जारी हुए एक साल से अधिक समय हो चुका है लेकिन राज्य सरकार अभी तक इस उहापोह में ही फंसी है कि परियोजना के क्रियान्वयन के लिए आखिर किस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाए।
एमडब्ल्यूएएन राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना का हिस्सा है।तय कार्यक्रम के मुताबिक इस परियोजना को जून 2006 तक पूरा किया जाना था लेकिन अभी तक इसका भविष्य अधर में ही झूल रहा है। राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना का मकसद राज्यव्यापी नेटवर्क के जरिए राज्य सरकार को ब्लॉक स्तर पर ई-संपर्क मुहैया कराना है।
योजना का मकसद सूचनाओं के आदान-प्रदान और आम लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना है। केन्द्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मकसद राज्यों द्वारा आवश्यक ढांचागत सुविधाओं के विकास में मदद करना है। केन्द्र की मदद से राज्यों को इस योजना का क्रियान्वयन करना था। इससे पहले मध्य प्रदेश सरकार पूंजी की कमी की शिकायत कर रही थी और अब धन की कमी नहीं है तो प्रौद्योगिकी के चयन का सवाल आ खड़ा हुआ है।
मध्य प्रदेश के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि ‘अभी हमें इस बात का फैसला करना है कि परियोजना के लिए किस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाए।’ इसके लिए जुनिपर या सिस्को का इस्तेमाल करने का विकल्प है। उन्होंने बताया कि ‘हमें उम्मीद है कि अगले एक पखवाड़े के भीतर इस बारे में कोई अंतिम निर्णय ले लिया जाएगा।’
परियोजना के लिए केन्द सरकार से धनराशि जारी होने के बाद पिछले साल फरवरी में राज्य सरकार भी अपने अंशदान को भी मंजूरी दे दी। परियोजना के लिए केन्द्र सरकार ने 117 करोड़ रुपये जारी किए हैं जबकि राज्य सरकार की हिस्सेदारी 54 करोड़ रुपये है। इससे पहले राज्य सरकार ने परियोजन के लिए केवल 5 करोड़ रुपये की ही मंजूरी दी थी।
उन्होंने बताया कि ‘हमने एक वेंडर के साथ सेवा स्तरीय समझौता (एसएलए) किया है। राज्य के 320 ब्लाकों के लिए मौजूदगी बिंदु (पीओपी) तैयार किए जा चुके हैं। हमें उम्मीद है कि जल्द ही निजी साझेदार की तलाश पूरी कर ली जाएगी।’
इस परियोजना के लिए भारत संचार निगम लिमिडेट बैंडविथ मुहैया कराएगी। राज्य सरकार के साथ एसएलए करने वाले निजी साझेदार या वेंडर तयशुदा रिटर्न मिलेगा जो दी जा रही सेवाओं पर निर्भर करेगी। हालांकि वेंडर द्वारा दी जाने वाली सेवाएं तय मानकों, नियमों और पैरामीटर्स पर खरी नहीं उतरती हैं तो राज्य सरकार के पास समझौते को रद्दे करने का अधिकार भी होगा। राज्य सरकार ने 9300 सामुदायिक सेवा केन्द्र तैयार करने की योजना बनाई है।