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उत्तराखंड की कृषि नीति पर लगा चुनावी ब्रेक

Last Updated- December 10, 2022 | 7:06 PM IST

काफी दिनों से अटकी पड़ी उत्तराखंड की नई कृषि नीति की घोषणा अब लोकसभा चुनावों के बाद की जाएगी।
कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि जब तक चुनाव पूरे नहीं हो जाते हैं तब तक कृषि नीति की घोषणा नहीं की जाएगी।
राज्य में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) और दूसरी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन की कमी को देखते हुए अब राज्य सरकार नई कृषि नीति के जरिए विशेष कृषि क्षेत्रों (एसएजेड) पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
एसएजेड के तहत राज्य सरकार ने स्व-रोजगार औद्योगिक इकाइयों को तैयार करने का प्रस्ताव रखा है। इनमें मछली पालन, चाय की खेती और दूसरी कृषि गतिविधियां शामिल हैं। रावत ने बताया कि राज्य एसएजेड के जरिए कृषि जमीन के संरक्षण और खाद्य सुरक्षा को लागू करने की कोशिश में है।
कृषि नीति के मसौदे में यह साफ किया गया है कि उत्तराखंड में कृषि जमीन का इस्तेमाल औद्यागीकरण के लिए नहीं किया जाए। रावत ने बताया कि विभाग ने यह प्रस्ताव रखा है कि सरकार उद्योगों के विकास के लिए कृषि जमीन की बजाय गैर-कृषि जमीन और अनुपजाऊ जमीन का इस्तेमाल करे।
उन्होंने बताया कि राज्य में करीब 3.12 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि और 3.83 लाख अनुपजाऊ जमीन उपलब्ध है। इस मसौदे को कृषि वैज्ञानिकों की एक समिति ने तैयार किया है जिसमें से अधिकांश पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के हैं।
इस मसौदे में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य की काफी कृषि जमीन सेज परियोजनाओं और दूसरे उद्योगों के विकास के लिए बिल्डरों और उद्योगपतियों के हाथों में जा चुकी हैं। पर बाद में इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और रावत के निर्देश पर इस नीति के लिए फिर से मसौदा तैयार किया गया है।
इस नई नीति की खासियत यह होगी कि सरकार अब उपजाऊ जमीन के संरक्षण के लिए एसएजेड का विकास करेगी। रावत ने इस बारे में कहा, ‘हम कृषि को संरक्षण देने के लिए उत्तराखंड में एसएजेड का विकास करना चाहते हैं।’
हालांकि उन्होंने साफ किया कि एसएजेड का विकास एसईजेड को राज्य से दूर रखने के लिए नहीं किया जा रहा है। कुछ ऐसा ही गोवा, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में देखने को मिला था जहां इस मसले पर काफी बवाल मचा था।

First Published - March 6, 2009 | 12:14 PM IST

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