बाढ़ राहत शिविरों में अब स्थिति गंभीर होने लगी है। शहरी इलाकों में फौरी तौर पर चिकित्सक पहुंचने शुरू हो गए हैं।
वहीं दूरदराज के इलाकों में बांध, स्कूलों, रेल लाइनों पर अपने संसाधनों और ग्रामीणों के सहयोग से खाना खाकर जीवन बिता रहे लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति लगातार बिगड़ रही है।
मधेपुरा के तुनियाही गांव के सुबोध ऋषिदेव अपनी पत्नी विमला देवी के साथ मधेपुरा के भवन टेकरी के पास बांध पर मचान बनाकर रहती है। उसके बच्चे राजदीप कुमार की तबियत खराब है। खाना खाते ही उल्टी हो जाती है लेकिन इसे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें।
यही हाल ममता देवी का है, जिसकी 8 साल की लड़की काजल को पिछले 3 दिन से उल्टी हो रही है। तुनियाही गांव की छोटकी देवी को डायरिया हुआ है और उसके बच्चे को 4 दिन से खूनी पेचिश हो रही है। लेकिन यहां इलाज का कोई इंतजाम नहीं है।
यह हाल मधेपुरा जिले के भवन टेकरी के पास एक बांध पर रहे अधिकांश लोगों का है। लेकिन सहरसा में भी कुछ बेहतर हालात नहीं है। सहरसा के एक कैंप में रुबी, मधेपुरा के खवैती गांव की रहने वाली है। रुबी का दुर्भाग्य देखिए कि शिविर से उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसने बच्चे को भी जन्म दिया लेकिन एक दिन दुनिया देखने के बाद ही वह मर गया।
मधेपुरा से 10 दिन से भूखे प्यासे चलकर आई भगिया देवी की सहरसा कैंप में पहुंचते ही मौत हो गई। भूख और बीमारी की इस वीभत्स हालत में पटना से स्वास्थ्य सचिव दीपक कुमार सहरसा, मधेपुरा और सुपौल पहुंचे हैं। उन्होंने निर्देश दिया कि बड़े राहत कैंपों की पहचान कर उसमें स्वास्थ्य कर्मचारियों को बैठाया जाएगा जो 24 घंटे लोगों की देखभाल करेंगे। इसके अलावा चार मोबाइल वैन का इंतजाम किया जाएगा।
यूनीसेफ के भी मोबाइल वैन पहले से ही चल रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में भी राज्य सरकार की सेवाएं नाकाफी साबित हो रही हैं। हालांकि राज्य सरकार ने चिकित्सकों की अस्थायी भर्ती करनी भी शुरू की है।
चेन्नई के एक एनजीओ के पदाधिकारी जीवन किशोर ने बताया कि हम लोग स्वास्थ्यकर्मियों की टीम जगह-जगह भेज रहे हैं। यह स्थिति मुख्य मार्गों पर बने कैंपों की है। उन कैंपों को तो कोई पूछने वाला भी नहीं है जो इस बाढ़ प्रभावित इलाकों के ग्रामीण लोग चला रहे हैं।