कई बार जंगलों में भीषण आग के लिए चीड़ के सूखे पत्तों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इन पत्तों में आग इतनी तेजी से फैलती है मानो बारूद के ढेर पर किसी ने माचिस की जली हुई तिल्ली रख दी हो।
अभी तक चीड़ के सूखे पत्तों का कोई खास उपयोग में नहीं होता था, लेकिन हाल ही में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में रहने वाले केमिकल इंजीनियर एस आर वर्मा को एक ऐसी विधि विकसित करने में कामयाबी मिली है, जिसकी मदद से चीड़ के सूखे पत्तों से लिग्निन नाम के रसायन का उत्पादन किया जाएगा।
इस नई तकनीक के आधार पर वर्मा अल्मोड़ा जिले के मोहन में एक कारखाना स्थापित करने की भी योजना बना रहे हैं, जहां लिग्निन रसायन का उत्पादन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि देश के विभिन्न उद्योगों में लिग्निन को काफी बड़े पैमाने पर उपयोग में लाया जाता है। एक मोटे तौर पर, वर्तमान में भारत करीब 14000 टन लिग्निन रसायन का जापान और अन्य यूरोपीय देशों से आयात करता है।
यहां वाणिज्यिक जरूरतों के लिए लिग्निन के 50 से भी अधिक यौगिकों को उद्योगों द्वारा इस्तेमाल में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त लिग्निन का उपयोग लेड एसिड बैटरी, ऑयल ड्रिलिंग, टेक्सटाइल डाइंग, जल उपचार, रसायनों की ढलाई और इसी तरह के कई अन्य क्षेत्रों में भी किया जाता है। वर्मा जिस कारखाने की स्थापना की योजना बना रहे हैं, वहां लिग्निन के उत्पादन के अलावा, वाटर कूलर पैडों के लिए पाइन वूल का भी उत्पादन किया जाएगा, जो काफी कम कीमत में ही उच्च कूलिंग मुहैया कराएगा।
वाटर कूल पैडों का इस्तेमाल पैकेजिंग, एयर फिल्टर, डोरमेट, फॉल्स रूफिंग और फ्लोर कवरिंग सहित अन्य चीजों में भी किया जाता है। संयंत्र की स्थापना के लिए 1.25 करोड़ रुपये निवेश किया जाएगा। इस प्रयोजन के लिए वर्मा, मोहन में 2 एकड़ जमीन की तलाश में हैं। बहरहाल अपने नए प्रोजेक्ट के संदर्भ में वर्मा राज्य के मुख्य मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी से भी मिलने का इरादा है। वर्मा ने बताया, ‘मैं अपने प्रोजेक्ट को राज्य सरकार के समक्ष रखूंगा’।
उन्होंने बताया, ‘मेरा उद्देश्य इस मॉडल इकाई की स्थापना करने का है, जिसकी मदद से देश के अन्य जगहों में भी इसी तरह की इकाइयां स्थापित की जा सके। ये इकाइयां उन्हीं जगहों पर स्थापित की जाएंगी जहां चीड़ के पत्ते अधिक मात्रा में होते हों।’ बहरहाल, वर्मा को उत्तराखंड जंगल विभाग से हर साल 1000 टन चीड़ के पत्ते खरीदने की अनुमति मिल गई है।
वर्मा को अगले पांच साल के लिए 20 रुपये प्रति टन के हिसाब से चीड़ के पत्ते मुहैया कराए जाएंगे। इस परियोजना को केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने भी मंजूरी दे दी है। उद्योग के अतिरिक्त निदेशक सुधीर नौटियाल से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाकों में इस तरह की परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे बेकार पड़ी चीजों से भी रोजगार की संभावनाओं को तलाशने में मदद मिल सकेगी।
एक ऐसी विधि विकसित करने में कामयाबी मिली है, जिसकी मदद से सूखे चीड़ के पत्तों से लिग्निन नाम का रसायन बनाया जाएगा