भारत में बढ़ रहे बाल श्रम की घटनाओं को देखते हुए बाल आयोग ने निर्यात प्रोत्साहन परिषद को निर्देश दिया है कि वे एक प्रमाण पत्र जारी करें जिसमें इस बात का भरोसा जताया गया हो, कि किसी भी उत्पाद, जिसे विदेश भेजा जा रहा हो, उसके निर्माण के किसी भी स्तर पर बच्चों को न लगाया गया हो।
निर्यात परिषद को कहा गया है कि वे एक स्व-नियमित तंत्र का विकास करें, जिसके जरिये बाल श्रम को आपूर्ति से लेकर निर्यात के हर स्तर पर रोका जा सके। राष्ट्रीय बाल श्रम अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने कहा कि आयोग देश में बढ़ रही बाल श्रम से काफी चिंतित है और इस बाबत गंभीर कदम उठाए जाने की जरूरत है। बहुत सारे बच्चे तो बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करते हैं।
आयोग ने राज्यों को निर्देश दिया है कि सामाजिक अंकेक्षण के जरिये इस बात का पता लगाएं कि अलग अलग उद्योगों और घरेलू स्तरों पर बच्चों से कैसा काम लिया जाता है और इसमें कितने बच्चे शामिल हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि बाल श्रम (निषेध और नियमन) कानून 1986 की धारा- खंड अ और खंड ब के तहत यह सुनिश्चित किया जाए कि इसके मातहत कोई बच्चा किसी भी धंधे में काम न कर रहा हो।
बाल श्रम के विरोध में काम कर रहे एक कार्यकर्ता चिन्मय प्रसाद ने कहा कि इस तरह के कदम से बाल श्रम को रोकने में थोड़ी मदद तो जरूर मिलेगी। हालिया कदम को अगर ईमानदारी पूर्वक नहीं उठाया गया, तो सारा प्रयास बेकार हो जाएगा।