पश्चिमी कोलकाता से लगभग 200 किलोमीटर दूर दुर्गापुर-अंडाल क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण काफी आसान हो गया है। दरअसल इस क्षेत्र में मौजूद कोयला और इस्पात उद्योगों के कारण परियोजनाओं के लिए जमीन खरीदना मुश्किल नहीं रह गया है।
इस्पात, बिजली, कोयला संयंत्रों की मौजूदगी से यहां के वातावरण की हवा काफी शुष्क हो गई है। स्थानीय निवासियों ने बताया कि संयंत्रों से लगातार निकलते हुए धुएं के कारण वहां की जमीन की उत्पादकता भी कम हो गई है।
हालात यह है कि किसान मुआवजा लेकर अपनी जमीन छोड़ने को भी तैयार हैं। राज्य के औद्योगिक मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री विधान चंद्र रॉय ने दुर्गापुर के शुष्क पर्यावरण के कारण ही इसे दुर्गापुर इस्पात संयंत्र के लिए चुना था।
मजे की बात यह है कि आज भी यहां पर उद्योग इसी आधार पर इस जगह का चुनाव कर रहे हैं।’ इस क्षेत्र में चल रहे कोयला खनन के तेजी से बढ़ते हुए कारोबार के कारण भी यहां कि किसान अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हैं।
कोयला खनन या फि र खदानों से निकलने वाले कचरे के कारण भूमि अगर उत्पादन के योग्य नहीं रहती है तो खनन करने वाली कंपनियां आमतौर पर किसानों को मुआवजा देती हैं। ऐसे मामलों में मुआवजा सरकारी नियामकों के तहत ही दिया जाता है लेकिन वह नहीं के बराबर ही होता है।
इससे बचने के लिए किसान अपनी जमीनें पहले ही बेचने को तैयार हैं। किसानों को डर है कि उनकी जमीन कोल इंडिया की इकाई ईस्टर्न कोलफील्ड्स (ईसीएल) ले सकती है। इसीलिए ज्यादातर किसान एयरोट्रोप्लिस को अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हैं।
ईसीएल ने किसानों को लगभग 1.2 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देने की पेशकश की थी। जबकि दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम ने किसानों को उनके घर की जमीन के लिए 11.24 लाख रुपये और एक फसल वाली जमीन के लिए 7.5 लाख-8.24 लाख रुपये प्रति एकड़ के बीच मुआवजा देने की पेशकश की है।
एयरोट्रोप्लिस परियोजना पर मिले दक्खिन खांडा ग्राम के एक किसान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि वह जिलाधिकारी के कार्यालय से मुआवजे का चेक मिलने का इंतजार कर रहा है। यह परियोजना अंडाल ब्लॉक और दुर्गापुर-फरीदपुर ब्लॉक में 5 ग्राम पंचायतों के तहत आने वाली लगभग 3,500 एकड़ भूमि पर विकसित की जाएगी।
अगले अंक में- किसान बीएपीएल से करना चाहते हैं सीधा सौदा