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आर्थिक आजादी

Last Updated- December 07, 2022 | 10:42 PM IST


मुझे याद नहीं पड़ता कि 1908 से पहले मैंने चरखा या करधा कहीं देखा हो। फिर भी मैंने हिंद स्वराज में यह माना था कि चरखे के जरिए हिंदुस्तान की कंगालियत मिट सकती है। और यह तो सबके समझ सकने जैसी बात है कि जिस रास्ते भुखमरी मिटेगी उसी रास्ते स्वराज्य मिलेगा। आश्रम में हम सब कलम चलाने वाले या व्यापार करना जानने वाले लोग इकट्ठा हुए थे। हममें कोई कारीगर नहीं था। इसलिए करधा प्राप्त करने के बाद बुनना सिखानेवाले की आवश्यकता पड़ी। कोठियावाड़ और पालनपुर से करधा मिला और एक सिखाने वाला आया। उसने अपना हुनर नहीं बताया।


परंतु मगनलाल गांधी शुरू किए हुए काम को जल्दी छोड़ने वाले न थे। हमें तो अब खुद तैयार करके कपड़े पहनने थे। इसलिए आश्रमवासियों ने मिल के कपड़े पहनना बंद कर दिया और यह निश्चय किया कि वे हाथकरधे पर देशी मिल के सूत का बुना कपड़ा पहनेंगे। ऐसा करने से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। हिंदुस्तान के बुनकारों के जीवन की, उनकी आमदनी की, सूत प्राप्त करने में होने वाली उनकी कठिनाई की, इसमें वे किस प्रकार ठगे जाते थे और आखिर किस तरह दिनदिन कर्जदार होते जाते थे, इस बात की हमें जानकारी मिली। हम स्वयं अपना कपड़ा तुरंत बुन सकें ऐसी, ऐसी स्थिति तो थी नहीं। इस कारण बाहर के बुनकरों की मदद लेनी पड़ी। देशी मिल के सूत का हाथ से बुना कपड़ा झट मिलना नहीं था। इन बुनकरों को आश्रम की तरफ से यह गारंटी देनी पड़ी कि देशी सूत का बुना हुआ कपड़ा खरीद लिया जाएगा। इस प्रकार विशेष रूप से तैयार कराया हुआ कपड़ा बुनवाकर हमने पहना और मित्रों में उसका प्रचार किया।


मिलों के संपर्क में आने पर उनकी व्यवस्था और उनकी लाचारी की जानकारी हमें मिली। यह सब देखकर हम हाथ से कातने के लिए अधीर हो उठे। बुनकर सारा अच्छा कपड़ा विलायती सूत का ही बुनते थे। हमने देखा कि जब तक हाथ से कातेंगे नहीं, तब तक हमारी पराधीनता बनी रहेगी। लेकिन न तो कही कहीं चरखा मिला और न कही चरखे का चलाने वाला मिलता था। गुजरात में अच्छी तरह भटक चुकने के बाद गायकवाड़ के बीजापुर गांव में गंगाबहन को चरखा मिला। वहां बहुत से कुटुम्बों के पास चरखा था। कोई उनका सूत खरीद ले तो वे कातने को तैयार थे। गंगाबहन ने मुझे खबर भेजी। मेरे हर्ष का कोई पार न रहा। सूत इतनी तेजी से कतने लगा कि मैं हार गया। इसके बाद तो घर घर में खादी बनने लगी।

First Published - October 1, 2008 | 11:30 PM IST

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