देश में कृषि उपज को बढ़ाने के लिए तरह तरह के उपाए किए जा रहे हैं।
इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश सरकार ने नीलगाय की लगाम कसने की पूरी तैयारी कर ली है। नीलगाय के धाकड़ अंदाज के कारण हर साल दलहल, गेहूं, चना और सरसों जैसी फसलों का काफी नुकसान पहुंचता है। कृषि निदेशक जे पी त्रिपाठी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि खेतों में नीलगाय के आतंक को खत्म करने के लिए खेतों के किनारे खाई खोदी जाएगी, बाड़ लगाए जाएंगे और अगर जरुरत पड़ी तो नर नीलगायों का बधियाकरण भी किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि बाड़ की चौड़ाई लगभग 6 फीट होगी।उन्होंने बताया कि इन उपायों के अलावा यदि नीलगाय रिहायशी इलाकों में घुसते हैं तो संबंधित जिलाधिकारी उन्हें पकड़ने के लिए निजी हंटर को लाइसेंस भी जारी कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के नए कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) आर के मित्तल ने कृषि विभाग को इस समस्या से तुरंत निपटने के लिए कहा था। त्रिपाठी ने कहा कि लोगों के बीच इस बात की जागरुककता फैलाने की भी जरुरत है कि नीलगाय का गोवंश से कोई संबंध नहीं है और इसे मारने से किसी धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंचती है। नीलगाय से खेतों की सुरक्षा के उपाए करने वाले किसानों को सब्सिडी देने का भी प्रस्ताव है।
इस योजना के तहत किसानों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी जो प्रति एकड़ 50,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। त्रिपाठी ने बताया कि इस संबंध में 25 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट्स को शुरू किया जा चुका है। ये ऐसे जिले हैं जहां नीलगायों का प्रकोप सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब में भी किसान नीलगायों की बढ़ती तादात से परेशान है।
घोड़े जैसे हावभाव और नीले रंग वाला यह जानवर काफी फूर्तीला होता है और खेतों तथा बगीचों में घुसकर फसल को नुकसान पहुंचाने में इसे महारत हासिल है। नीलगायों से सिर्फ फसल को ही नुकसान नहीं पहुंचता है बल्कि यह हाईवे पर भी कूदफांद करने लगाता है और बड़ी-बड़ी सड़क दुर्घटना की वजह बनता है। नीलगाय के अराजकता भरे स्वभाव के कारण फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है।
फसलों को होने वाले नुकसान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ राज्यों में किसान इन्हें न सिर्फ गोली से मारने को मजबूर हो गए हैं बल्कि कई जगह लोहे से बना बाड़ लगाकर उसमें करेंट प्रवाहित कर दिया जाता है। हालांकि, इससे कई बाद आम आदमी को भी जान से हाथ धोना पड़ता है।
पशुओं से प्रेम के लिए जाना जाने वाला विश्नोई समुदाय जानवरों को मारने के प्राधिकरण के आदेश के खिलाफ मुकाबला कर रहा है। हालांकि, भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत नीलगाय को दुर्लभ पशुओं की श्रेणी में नहीं रखा गया है। त्रिपाठी ने कृषि और वन विभाग द्वारा संयुक्त अभियान चलाने का सुझाव दिया ताकि आगे किसी विवाद की स्थिति से बचा जा सके।
उन्होंने बताया कि खेतों के किराने जेट्रोफा के पौधे को लगाकर भी फसलों को इन पशुओं के प्रकोप से बचाया जा सकता है। जेट्रोफा जैविक-ईधन बनाने के काम आता है। नीलगाय की समस्या का अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन दस्तावेज में भी इससे निपटने के लिए पायलेट प्रोजेक्ट की शुरुआत करने का जिक्र किया है।