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कपड़ा मिलों पर भारी पड़ा समर्थन मूल्य

Last Updated- December 07, 2022 | 8:07 PM IST

लुधियाना, अमृतसर, बद्दी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित समूचे उत्तर भारत में कपड़ा मिलों ने अपने उत्पादन में कम से कम 25 प्रतिशत की कटौती की है।


इस कमी की वजह कच्चे माल के तौर इस्तेमाल किए जाने कपास की कीमतों में बढ़ोतरी, केंद्र सरकार द्वारा 2008-09 कपास सत्र के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में प्रस्तावित वृद्धि और कपड़ा उत्पादों पर डयूटी ड्रा बैक दरों में कटौती है।

उत्तर भारत कपड़ा मिल्स एसोसिएशन (एनआईटीएमए) के अध्यक्ष सुनील के जैन ने बताया कि ‘चुनावी साल में किसानों को खुश करने के लिए सरकार ने 2008-09 के दौरान लंबे धागों के लिए एमएसपी को 2,030 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दिया है जबकि मझोले आकार के धागों के समर्थन मूल्य को 1,800 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।’

लाकड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसान लॉबी को खुश करने के लिए यह कदम उठाया है और सरकार का मकसद आम चुनावों में फायदा हासिल करना है। उन्होंने कहा कि देश में इस साल कपास की करीब 35 लाख गांठों की कमी होगी। सरकार को ऐसे लोगों की नकेल कसने पर ध्यान देना चाहिए तो सांठगांठ करके कपास की कमी पैदा कर रहे हैं।

लुधियाना में इस साल कपड़ा इकाइयों को कई तरह की परेशानियों से रूबरू होना पड़ा है। इस दौरान कपड़ा इकाइयों के उत्पादन में 25 से 30 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिली है। उन्होंने कहा कि बीते साल कपड़ा मिलों के मार्जिन में काफी कमीर् आई थी और एमएसपी में बढ़ोतरी से इस साल भी हालत में सुधार की उम्मीद खत्म हो गई है।

इससे पहले कपड़ा मिलों को डालर के मुकाबले रुपये की तेजी और उसके बाद मजदूरों की किल्लत का खामियाजा उठाना पड़ा था। इसके बाद घरेलू बाजार में कपास की कमी होर् गई और कपास की कीमतों में 35 प्रतिशत तक का इजाफा हो गया। इसके बाद कपास के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के साथ ही उद्यमियों की रही सही उम्मीद भी टूटती दिख रही है।

उन्होंने कहा कि ‘पिछले कुछ वर्षो के दौरान कपास के समर्थन मूल्य में 5 से 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जाती रही है लेकिन इस साल 38 से 47 प्रतिशत वृद्धि करने की तैयारी चल रही है। ऐसी दरों पर कपड़ा मिलों के उत्पादन में कमी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है जिससे बड़ी संख्या में लोगों को अपने रोगजार से हाथ धोना पड़ेगा।’

लुधियाना बुनाई संघ के अध्यक्ष अजीत लाकड़ा ने बताया केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी बढ़ाने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। एनआईटीएमए के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अशिष बागरोडिया ने बताया कि ‘उत्तर भारत की ज्यादातर कपड़ा मिलें लुधियाना, चंड़ीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में हैं।

इनमें से ज्यादातर मिलों को इस साल की पहली तिमाही के दौरान घाटा उठाना पड़ा है या फिर बीत साल के मुकाबले उनके मुनाफे में कमी आई है। उत्तर भारत में अधिकतर मिलें पहले ही घाटे में चल रही हैं। ऐसे में कच्चे माल की लागत बढ़ने से मिलों पर दबाव बढ़ेगा।’

उन्होंने बताया कि ‘डयूटी ड्रा बैक दरों में भारी कमी से भी उद्योग प्रभावित होगा। नई दरें सभी तरह के कपड़ा उत्पादों पर लागू होंगी। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों ने पश्चिम में मांग में कमी के कारण अगस्त 2008 से कपड़ा उत्पादों के निर्यात पर दी जाने वाली छूट को बढ़ा दिया है जबकि भारत में इसका उल्टा हो रहा है।’

आल्पस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष के के अग्रवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में कपड़ा उद्योग बढ़ती उत्पादन लागत और तैयार उत्पाद की कीमतों में कमी की दोतरफा मार झेल रहा है। उन्होंने कहा कि ‘यह ऐसा समय है जब उद्योग को वास्तव में सरकार की मदद की दरकार है। लेकिन उद्योगों की मदद करने के बजाए सरकार उद्योग के जुड़े विभिन्न मसलों को राजनीतिक नजरिए से देख रही है।’

उन्होंने कहा कि सरकार कपड़ा उद्योग से जुड़ी चिंताओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए और एमएसपी की दर वाजिब होनी चाहिए ताकि उद्योग भी प्रभावित न हों और किसानों के हितों की भी अनदेखी न हो। इसके अलावा डयूटी ड्रा बैंक दरों को भी बहाल करना चाहिए।

First Published - September 8, 2008 | 9:52 PM IST

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