कैसे होते हैं जमीन घोटाले
विभिन्न जमीन घोटालों की जांच कर चुके एक रिटायर्ड सीबीआई अधिकारी का कहना है कि ज्यादातर मामलों में लॉटरी प्रणाली में ही हेरा-फेरी की जाती है। लॉटरी निकालने वाले सॉफ्टवेयर में प्लॉटों और आवेदकों से संबधित कोड (जानकारी भी हो सकती है) पड़े रहते है।
इसके लिए प्रशिक्षित कंप्यूटर जानकार या हैकर्स भी अपना कौशल दिखाते है। अगर कोई व्यक्ति कोड के साथ छेड़छाड़ करता है तो लॉटरी के समय पहले से नियोजित व्यक्ति के लिए ही प्लॉट का आवंटन हो जाता है।
इसके अलावा कई बार ऐसा होता है कि एक ही आवेदक कई नामों, पतों और टेलीफोन नंबरों (यह नाम व पते फर्जी या आवेदक के रिश्तेदार के भी हो सकते है) का हवाला देकर आवंटन फार्म को भरता है।
यह फार्म एक अलग प्रतिभागी का मान लिया जाता है। ऐसे में एक ही प्रतिभागी (जिसने अलग-अलग नामों से आवेदन किया है) को दो या तीन प्लाटों का आवंटन हो जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण डीडीए में वर्तमान में हुआ जमीन घोटाला है।
कौन है प्रक्रिया का सूत्रधार
मकानों की आवंटन प्रक्रिया में प्रॉपर्टी डीलरों, प्राधिकरण अधिकारियों, भू-माफिया से लेकर नाम, पते जाति के फर्जी दस्तावेज बनाने वाले तक सभी जुडे होते हैं। कई मकान तो आवंटित होते ही बिक जाते है।
सरकारी अधिकारियों का जुगाड़ शास्त्र भी बड़े स्तर पर काम करता है। मकान के आवंटन को लेकर प्रॉपर्टी डीलरों और प्राधिकरण अधिकारियों में लाखों-करोड़ों का कमीशन ऊपर से लेकर नीचे तक सबमें बंटता है। ऐसे में घोटाले के तार खोलना मुश्किल हो जाता है।
जो जितना कमीशन देता है, उसके उतने मकान आवंटित भी हो जाते है। लॉटरी निकलने के पहले ही तय कर लिया जाता है कि किसके-किसके नाम पर लॉटरी खुलनी है।
कैसे रुकें ये घोटाले?
भ्रष्टाचार के विरोध में काम करने वाले एक एनजीओ ‘हितैषी’ के संयोजक विजित दहिया का कहना है कि मेट्रो शहरों में जमीन से जुड़े घोटालों को रोकना अपने आप में टेढ़ी खीर है। क्योंकि यहां सभी के तार एक दूसरे से जुड़े हुए है।
इसलिए पहला प्रयास तो एक ऐसे प्रबंध तंत्र को तैयार करना है जिसकी नीतियों को प्रॉपर्टी डीलर्स, भू-माफिया और राजनैतिक दबाव प्रभावित नहीं कर सकें।
इस बाबत नोएडा घोटाले में जनहित याचिकाकर्ता अमिक खेमका का कहना है कि सरकारी प्राधिकरणों का काम जमीन या मकानों को बेचना नहीं, नीतियों को नियोजित करना है।
अगर सरकार ऐसा करती है तो नोएडा और डीडीए जैसे घोटालों का होना तय है। कोआपरेटिव सोसाइटियो को गठित कर जमीन और मकान का आवंटन करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
सरकार किसानों से सस्ती दरों में जमीन खरीदती है और उन्हें तीन से चार गुनी कीमतों पर प्रॉपर्टी डीलरों और पूंजीपतियों को बेच देती है। ऐसे में जमीन आम आदमी के हाथ से निकल जाती है।