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उत्तर प्रदेश में यूं ही चला तो कायम रहेगा अंधेरा

Last Updated- December 07, 2022 | 2:45 PM IST

उत्तर प्रदेश में औद्योगीकरण की राह में अभी भी बिजली की बदहाली एक बड़ी बाधा बनी हुई है और मौजूदा हालात में किसी तरह के बदलाव की बात दूर की कौड़ी ही लगता है।


उद्योगों का दुखड़ा है कि राज्य में बिजली की आपूर्ति लचर बनी हुई है और कीमत काफी अधिक है। बीते पांच वर्षो के दौरान बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए राज्य सरकार उत्पादन बढाने में पूरी तरह से असफल रही है।

इस कड़ी में ताजा घटना के तहत इलाहाबाद में प्रस्तावित दो ताप बिजली परियोजनाओं को लिया जा सकता है। नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर परियोजना जहां की तहां खड़ी है और राज्य सरकार एक साल के भीतर अब तीसरी बार बोली आमंत्रित करने की तैयारी कर रही है।

पहली बोली के दौरान लैंकों इंफ्रास्ट्रक्चर ने सबसे कम किराए की पेशकश की थी। इस बाद की बोली में रिलायंस ने बाकि सबके पीछे छोड़ दिया। हालांकि राज्य सरकार ने दोनों बोलियों को अधिक बताकर खारिज कर दिया है। एक बार फिर बोली प्रक्रिया शुरू करने से न केवल 3300 मेगावाट की दो बिजली परियोजनाओं की स्थापना में देरी होगी बल्कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बिजली उत्पादन में 10,000 मेगावाट की क्षमता को जोड़ने का लक्ष्य भी पीछे छूट सकता है।

चालू योजना के बीते एक साल के अनुभवों को देखें तो इस लक्ष्य को हासिल करना माया राज के लिए मुश्किल है। ऐसे हालात में 24 घंटे लगातार बिजली की आपूर्ति का सपना दूर की कौड़ी लगता है। बिजली सहित ढांचागत संरचना के अभाव के चलते बीते एक दशक के दौरान राज्य के औद्योगिक केन्द्र कानपुर में बड़ी संख्या में औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं। इसके अलावा कई इकाइयां ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों का रुख किया है। इन राज्यों में उद्योगों की स्थापना पर आकर्षक छूट की पेशकश की जा रही है।

इस समय उत्तर प्रदेश में कुल बिजली उत्पादन क्षमता 5,500 मेगावाट है जबकि व्यस्त समय के दौरान राज्य में बिजली की मांग 8,000 मेगावाट तक बढ़ जाती है। राज्य में करीब 2,500 मेगावाट बिजली की कमी को मोटे तौर पर आवासीय और औद्योगिकी क्षेत्र में कटौती कर पाटा जाता है। ऐसी हालत में उत्तर प्रदेश बिजली निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) से राज्य के ग्रामीण इलाकों में बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कहा गया है।

एक प्रमुख उद्योग समूह के अधिकारी ने बताया कि ‘दूसरे राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में उद्योगों के लिए बिजली की दर अधिक है, जिससे हमें काफी नुकसान हो रहा है।’ राज्य में पुरानी पड़ चुकी मशीनों के कारण भी बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। बिजली संकट से बचने के लिए राज्य सरकार सार्वजनिक निजी भागीदारी को बढ़ावा दे रही है। इस दिशा में रोजा और अनपरा सी जैसी परियोजनाएं निजी क्षेत्र की कंपनियों रिलायंस और लैंको को बोली प्रक्रिया के जरिए दी गई है।

इसके अलावा मेजा, ललितपुर, ओबरा और अनपरा डी जैसी परियोजनाओं का संयुक्त उद्यम के जरिए विकास किया जा रहा है। नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) ललितपुर में 4,000 मेगावाट की बिजली परियोजना लगा रही है। इस अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजना के लिए 20,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और इसके लिए 2,500 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड  (बीएचईएल) अनपरा डी में 1,000 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजना लगा रही है।

बत्ती है गुल

स्पष्ट बिजली नीति के अभाव में आम लोगों का जीवन हुआ दूभर
भारी बिजली कटौती से पड़ोसी राज्यों में उद्योगों का पलायन जारी

First Published - August 3, 2008 | 11:25 PM IST

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