रियल एस्टेट कंपनियों की माने तो सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने के बावजूद एनसीआर में रिहायशी योजनाओं की बुकिंग में कमी नहीं आ रही है।
ऐसा अफोर्डबल हाउसों यानी 20 से 30 लाख रुपये वाले मकानों की मांग के उठने और मुनाफे के लिए निवेश करने वाले छोटी अवधि के निवेशकों के बाजार से गायब होने के चलते हो रहा है। गाजियाबाद के एसवीपी ग्रुप के निदेशक विजय जिंदल कहते है कि ‘छोटी अवधि के निवेशक आपस में ही मकानों की खरीद फरोख्त करते हुए मकानों की कीमत को बढ़ा देते हैं।
ऐसे में मकान की कीमत को उसकी वास्तविक कीमत से दो से तीन गुना कर दिया जाता है और उपभोक्ता को वास्तविक कीमत का अंदाजा नहीं हो पाता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल बाजार से ऐसे निवेशक गायब हैं और इसलिए यह मकान खरीदने के लिए एक बहुत अच्छा समय है। ‘ एनसीआर का एक बहुत बडा तबका सस्ते मकानों की आस में बैठा हुआ है और इस समय डेवलपर कंपनियां भी ऐसे मकानों के निर्माण में दिलचस्पी ले रही हैं तो मानी हुई बात है कि सस्ते मकानों की मांग तो बढ़ेगी ही।
नोएडा स्थित पैरामांउट ग्रुप के विपणन प्रमुख कुलभूषण गौड़ का कहना है कि ‘लोग इस समय एनसीआर में बसना चाहते है। इसलिए बैंक की ऋण दरों के बढ़ने के बावजूद लोग मकान खरीदने के लिए आगे आ रहे हैं। मकान खरीदने वालों में मध्यम और निम् मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस वर्ग का मानना है कि किराये के मकान में 7 से 8 हजार रुपये किराया देने से अच्छा है कि मकान खरीद लिया जाए।