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आतंक से लोहा लेगी देसी तकनीक

Last Updated- December 10, 2022 | 1:06 AM IST

अब जैविक आतंकवाद या फिर पूर्ण युध्द के समय बीमारियों और घातक सूक्ष्म जीवाणुओं से बचाव मुमकिन हो सकेगा। कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इसके लिए एक खास तरह का परिधान बनाने की तैयारी में जुटा है।
पिछले साल मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद जैविक हमले से बचाव के लिए ऐसी तकनीक का विकास जरूरी समझा जाने लगा था। इस परियोजना को सफल बनाने के लिए आईआईटी के साथ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) मिलकर काम कर रहा है।
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर निशीथ वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि संस्थान का बायो-इंजीनियरिंग विभाग नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से ऐसे कार्बन परिधान बनाने में जुटा है।
उन्होंने बताया कि इस परियोजना के लिए शोध का काम दो प्रयोगशालाओं में जारी है। एक प्रयोगशाला में ऐसे कार्बन परिधान का विकास किया जा रहा है जबकि दूसरे में इनकी क्षमता और उपयोगिता का परीक्षण किया जा रहा है।
जैविक हमलों से सुरक्षा के लिए फिलहाल जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, शोधकर्ताओं ने इस दफा उससे भी कारगर तकनीक को खोज निकाला है। 

वर्मा ने बताया, ‘हमने ऐसे पदार्थों को ढूंढ़ निकाला है जो घातक जीवाणुओं से बेहतर सुरक्षा दे सकते हैं। अभी जिन परिधानों का आयात किया जा रहा है, वे बहुत कारगर नहीं हैं।’
फिलहाल जैविक हमलों से बचाव के लिए परिधानों का आयात स्वीडन से किया जाता है जिससे राजकोषीय खजाने पर काफी बोझ पड़ता है। साथ ही देश में राष्ट्रीय सुरक्षा बलों और सशस्त्र बलों समेत दूसरे सुरक्षा बलों के लिए ऐसे परिधानों की मांग इतनी अधिक है कि इसे आयात से पूरा कर पाना मुश्किल है।
वर्मा ने बताया कि अभी स्वीडन से जिन परिधानों का आयात किया जा रहा है, उनसे सीमित सुरक्षा ही मिल पाती है और साथ ही उनके लिए काफी अधिक भुगतान भी करना पड़ता है। 

उन्होंने बताया, ‘अभी जिन सूटों का आयात किया जा रहा है, उनमें कार्बन बीड कपड़े से चिपके या फिर सिले होते हैं। ऐसे में बहुत संभावना है कि जब इन परिधानों का सतह से घर्षण हो रहा हो तो ये निकल जाएं। ‘
इसके अलावा संस्थान का केमिकल इंजीनियरिंग विभाग भी घातक रासायनिक हथियारों से बचाव के लिए तकनीक विकसित कर रहा है। इस परियोजना का समन्वय केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आशुतोष शर्मा और वर्मा साथ मिलकर कर रहे हैं।
इन परिधानों के कमर्शियल इस्तेमाल के लिए आखिरी सुझाव देने के पहले आईआईटी कानपुर और रक्षा उत्पाद और भंडार अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीएमएसआरडीई) इन परिधानों की गहनता से जांच कर रहा है।
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर एस जी ढांडे ने बताया, ‘युद्ध में अपने सुरक्षा बलों के बचाव के लिए हमें जल्द से जल्द ऐसे परिधान तैयार करने की जरूरत है जो सुरक्षा की दृष्टि से कारगर तो हों ही, साथ ही जो बहुत महंगे भी न हों।’
डीएमएसआरडीई के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी एन माथुर ने बताया कि भले ही संयुक्त राष्ट्र ने 1993 में ही जैविक हमलों पर रोक लगा दी थी, फिर भी आतंकवादी समूहों द्वारा इनके इस्तेमाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘1990 के खाड़ी युद्ध में हम रासायनिक और जैविक हथियारों का इस्तेमाल देख चुके हैं।’
मुंबई हमलों के बाद से ही सरकार की ओर से इस परियोजना में तेजी लाने का दबाव बढ़ गया है और मंत्रालय ने इसके लिए आवश्यक फंड को मंजूरी भी दे दी है। माथुर ने बताया कि इस साल के अंत तक इस परियोजना के पूरा हो जाने की उम्मीद है।

First Published - February 15, 2009 | 9:42 PM IST

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