‘गर बर्रुअत जमीं अस्तु, हमीअस्तु हमीअस्तु हमीअस्तु।’ यानी धरती पर अगर कहीं जन्नत है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।
मुगल बादशाह जहांगीर के इन मशहूर अल्फाज को सुनकर ही आज भी दुनिया भर के सैलानी ‘जन्नत’ यानी कश्मीर में खिंचे चले आते हैं। लेकिन अगर यहां के बाशिंदों या कारोबारियों से पूछें, तो उन्हें कश्मीर अब जहन्नुम से कम नहीं लगता।
आजादी के बाद से शायद ही किसी दूसरे राज्य ने इतनी तकलीफें झेली हों, जितनी जम्मू कश्मीर को झेलनी पड़ी हैं। घुसपैठ, राष्ट्रपति शासन, आतंकवादी हमले, राज्यव्यापी बंद, अलगाववादी आंदोलन और ताजा तरीन अमरनाथ श्राइन बोर्ड विवाद ने लोगों को तो परेशान किया ही है, कारोबार की तो रीढ़ ही तोड़ दी है।
कमरतोड़ नुकसान
जम्मू कश्मीर के कारोबारियों को किस कदर दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है, इसका ताजा तरीन उदाहरण अमरनाथ विवाद है। धार्मिक और राजनीतिक पेचों के बीच फंसे इस मामले ने जब तूल पकड़ा, तो तकरीबन दो महीने के लिए राज्य की अर्थव्यवस्था को लकवा ही मार गया।
उद्योग संगठन एसोचैम के मुताबिक आंदोलन के अंतिम 15 दिनों में ही राज्य के व्यापारियों को 15,00 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा। लेकिन राज्य के तमाम व्यापारी संगठनों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पूरे दो महीने में उन्होंने कम से कम 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेला है।
कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष डॉ. मुबीन शाह ने श्रीनगर से टेलीफोन पर बताया कि केवल कश्मीर को ही आंदोलन के अंतिम 15 दिनों में 2,500 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, ‘अभी तो हम नुकसान का अंदाजा ही लगा रहे हैं। सही-सही आंकड़े तो अभी नहीं बताए जा सकते। लेकिन इतना जरूर है कि एसोचैम या सरकार जितना नुकसान बता रहे हैं, हमें उससे कई गुना ज्यादा नुकसान हुआ है।’
उन्होंने कहा कि सर्दी शुरू होने से पहले जुलाई-अगस्त के महीने ही कारोबार के लिहाज से सबसे अच्छे कहे जाते हैं और इसी दौरान सब कुछ बंद रहा। फल, पर्यटन, होटल, हथकरघा समेत तमाम ऐसे उद्योग, जो इस दौरान अच्छा कारोबार करते हैं, विवाद की मार झेल रहे हैं।
उम्मीदें चकनाचूर
व्यापारी संगठनों और उद्योग संगठनों के आंकड़े भी बताते हैं कि दो महीने का बवंडर कारोबारियों से बहुत कुछ छीनकर ले गया। राज्य में तकरीबन 2,500 करोड़ रुपये के फल उद्योग से 25 लाख परिवार जुड़े हैं, लेकिन अब टूट चुके कश्मीर फल संघ के पूर्व पदाधिकारियों के मुताबिक सड़ते हुए फलों ने सबकी उम्मीदें चकनाचूर कर दीं।
अमरनाथ विवाद के दौरान राजमार्ग बंद कर दिए गए थे और ट्रकों के चक्के भी जाम हो गए थे। नतीजतन बड़ी तादाद में फल जम्मू कश्मीर से बाहर नहीं जा सके। एक अनुमान के मुताबिक कश्मीर घाटी में ही फल कारोबारियों को 400 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा है। हथकरघा उद्योग को भी 300 करोड़ रुपये से ज्यादा गंवाने पड़े हैं।
राज्य की जान पर्यटन उद्योग है, लेकिन इस साल उसका तो भट्ठा ही बैठ गया। कश्मीर होटल ऐंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के महासचिव अब्दुल मजीद ने श्रीनगर से बताया कि सबसे ज्यादा कारोबार के सीजन में उठे अमरनाथ विवाद ने पर्यटन की खटिया खड़ी कर दी।
उन्होंने कहा, ‘इसे साजिश न कहें, तो क्या कहें। जो हमारी कमाई का वक्त होता है, उसी समय घाटी बंद कर दी गई। हमें 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा है। होटल तो बिल्कुल सुनसान पड़े हैं। अब तो इस बात की गारंटी भी नहीं है कि अगले साल हमारा कारोबार गुलजार हो पाएगा।’
मजीद ने बताया कि मई-जून जम्मू कश्मीर में होटलों के लिए सबसे अच्छे कारोबार के महीने होते हैं। लेकिन अलगाववादी आंदोलन और फिर अमरनाथ विवाद की वजह से जून में तकरीबन 90 फीसद कमरे खाली ही रहे।
जुलाई अगस्त में भी पर्यटकों की आमद होती है, लेकिन इस बार कोई पर्यटक इस राज्य में नहीं फटका। अक्टूबर-नवंबर में दुर्गा पूजा या दीपावली की छुट्टियों में लोग यहां आ जाते हैं, लेकिन घाटी के तकरीबन 2000 होटलों और रेस्टोरेंट को अब कोई उम्मीद नहीं बची है।
निवेश की भी छुट्टी
राज्य को निवेश के मामले में भी घाटा उठाना पड़ेगा। एसोचैम के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में राज्य में 5,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा निवेश की उद्योगपतियों की योजना थी। लेकिन अब राज्य को इससे हाथ धोना पड़ेगा।
यह नुकसान और बड़ा हो सकता है क्योंकि 2001 से 2007 के बीच राज्य में निवेश 20 करोड़ डॉलर सालाना से बढ़कर 2,300 करोड़ डॉलर सालाना हो गया था। जम्मू में निवेश की दर और भी ज्यादा थी। वहां 2012 तक उद्योग लगाने पर तमाम छूट दी जा रही थीं, जिससे निवेश बढ़ना लाजिमी था।