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जूट उद्योग को मिल रहे सकारात्मक संकेत

Last Updated- December 11, 2022 | 3:06 PM IST

वर्ष 1800 के शुरुआती दौर में, बंगाल के हावड़ा जिले में हुगली नदी के तट पर फोर्ट ग्लोस्टर के बगल में 30 एकड़ का भूखंड औद्योगिक गतिविधि का प्रमुख केंद्र था। इसमें भारत की पहली भाप से चलने वाली कपास मिल, ‘बोवरिया मिल्स’ थी, जिसे एक ब्रिटिश व्यापारी द्वारा स्थापित किया गया था और वह कारखानों का केंद्र बन गया, जिसमें एक रम डिस्टिलरी, फाउंड्री, सूती धागे का कारखाना, एक तेल मिल और एक पेपर मिल, आदि शामिल थी। रवींद्रनाथ ठाकुर के उद्योगपति दादा द्वारकानाथ ठाकुर के नेतृत्व में यह वाणिज्यिक परिसर संभवतः देश में अपनी तरह का पहला उद्योग था।
करीब 200 साल बाद, इतिहास के बहुत उतार-चढ़ाव और बदलाव के बाद यह उद्योग एक तरह के पुनरुत्थान के लिए तैयार है। 2023-2024 में एक नई जूट मिल आने वाली है और यह शायद दशकों में पहली समग्र रूप से बांगड़ के स्वामित्व वाली ग्लोस्टर तैयार करेगी और इसका एक कारण पैकेजिंग उद्योग में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है।
दुनिया प्लास्टिक कैरी बैग से दूर जा रही है और पर्यावरण को लेकर स्थिर निवारण का समर्थन कर रही है। इसके लिए जूट 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल है और इस प्रकार पर्यावरण के अनुकूल भी है। इसने विदेशी खुदरा विक्रेताओं जैसे, टेस्को, मुजी, मार्क्स ऐंड स्पेंसर और उनके जैसे अन्य, ने भारतीय जूट मिलों के अधिक ऑर्डर देने के लिए प्रेरित किया है। कम से कम, उनमें से कुछ लोग तो अवसर को भुनाने में सफल रहे हैं।
ग्लोस्टर की सहायक कंपनी ग्लोस्टर नुवो की नई मिल मुख्य रूप से निर्यात बाजार को पूरा करने के उद्देश्य से है। ग्लोस्टर के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत बांगड़ ने कहा, ‘पहले हम उत्पादन क्षमता में कमी के कारण ऑर्डर का निर्यात छोड़ने के लिए विवश थे, इसलिए हमने एक ग्रीन-फील्ड मिल स्थापित करने का फैसला किया। हम इसे अगले साल चालू करेंगे और जिन ग्राहकों को हमने खो दिया था उनसे ऑर्डर को वापस पाने के लिए निर्यात बाजार में जाएंगे। पहले चरण में मिल 30,000 टन क्षमता का उत्पादन करेगी।’ अधिकांश मिलों के लिए, शॉपिंग बैग का निर्यात कुल उत्पादन का लगभग 50 फीसदी हिस्सा है और वे लोग जो इसका व्यापार कर रहे हैं, इसमें उत्पादन में बढ़ोतरी करना चाहते हैं।
एमपी बिड़ला समूह वाली बिरला कॉरपोरेशन की एक इकाई, बिड़ला जूट मिल्स ने पिछले एक साल में क्षमता को दोगुना करके 27 लाख बैग कर लिया है और इस वित्त वर्ष में यह 50 लाख बैग उत्पादन तक पहुंच जाएगी। इसका अगला बड़ा लक्ष्य 1 करोड़ बैग का है।
बिड़ला जूट मिल्स के अध्यक्ष जी आर वर्मा ने कहा, ‘हम दुनिया भर में खुदरा श्रृंखलाओं को शॉपिंग बैग निर्यात कर रहे हैं। जिस तरह से मांग बढ़ रही है, हमें उम्मीद है कि 2023-2024 में एक करोड़ शॉपिंग बैग का निर्यात करेंगे।’  
जूट की धीमी पड़ी बाजार में, शॉपिंग बैग की मांग उम्मीदें बढ़ा रही है और यह समझना मुश्किल नहीं है कि ऐसा क्यों है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) के आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में जूट हैंडबैग का निर्यात लगभग 4.7 करोड़ था और 2021-22 में बढ़कर 10.4 करोड़ हो गया। मूल्य के लिहाज से निर्यात लगभग 321.61 करोड़ रुपये से बढ़कर 820.36 करोड़ रुपये हो गया।
क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक राहुल गुहा ने कहा कि फिर भी, एक सापेक्ष पैमाने पर यह खंड छोटा है और केवल कुछ ही मिलें हैं जो इसका लाभ उठा पाई हैं। कुल मिलाकर, यह क्षेत्र सरकारी मांग पर अत्यधिक निर्भर है। आमतौर पर छोटी से मध्यम आकार की मिलें लगभग 100 फीसदी सरकारी ऑर्डर का उत्पादन कर रही हैं, जबकि आधुनिक सुविधाओं वाली कुछ बड़ी कंपनियां अपने राजस्व का 30-40 फीसदी हिस्सा निर्यात से कमा रही हैं, इस उद्योग का आकार लगभग 10,000 करोड़ है, जिसमें से सरकार लगभग 7,500 करोड़ जूट बैग खरीद रही है, बाकी का निर्यात और विभिन्न रूपों में निजी चैनलों के माध्यम से बेचा जाता है। 
यह एक उच्च विनियमित क्षेत्र है जहां सरकार प्रत्येक फसल वर्ष के लिए जूट फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित करती है और जूट बैग की कीमतें टैरिफ आयोग के मूल्य फॉर्मूले पर तय की जाती हैं । वर्ष 2016 से उद्योग अनंतिम मूल्य निर्धारण के आधार पर आपूर्ति कर रहा है। 
जूट पैकेजिंग मैटेरियल अधिनियम (जेपीएमए), 1987 के तहत पैकेजिंग मानदंड वर्तमान में अनिवार्य है कि 100 फीसदी खाद्यान्न और 20 फीसदी चीनी उत्पादन जूट बैग में पैक किया जाएगा।
लेकिन सरकारी ऑर्डरों पर लाभ कम है। केयर एज की सहायक निदेशक ऋचा बगाडि़या के अनुसार, सरकारी आर्डरों का मार्जिन 5 से 7 फीसदी के बीच है। शॉपिंग बैग के लिए वही उत्पाद का मार्जिन लगभग 10 फीसदी अधिक होता है। मामूली मार्जिन पर काम करना इसकी व्यापक चुनौतियां हैं। 2021 में, जूट का उत्पादन रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जिसका मतलब था कि वित्त वर्ष 2022 में इसका उत्पादन बढ़ाना मुश्किल था। नतीजतन, कच्चे जूट की कीमतें लगभग 7,000-7,200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गईं।

First Published - September 23, 2022 | 11:13 PM IST

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