सन ‘1731 में फारबिसगंज और पूर्णिया के पास बहने वाली कोसी धीरे-धीरे पश्चिम की ओर खिसकते हुए 1892 में मुरलीगंज के पास, 1922 में मधेपुरा के पास, 1936 में सहरसा के पास और 1952 में मधुबनी और दरभंगा जिला की सीमा पर पहुंच गई। इस तरह लगभग सवा दो सौ साल में कोसी 110 किलोमीटर पश्चिम की ओर खिसक गई।
पिछले कुछ वर्षो से तटबंधों में कैद कोसी अब पुन: पूरब की ओर लौटने को व्यग्र दिखती है। 1984 में पूर्वी कोसी तटबंध का टूटना उसकी इस व्यग्रता का ही परिणाम था।’ रणजीव और हेमंत द्वारा लिखित पुस्तक ‘जब नदी बंधी’ के इस अंश से संकेत मिलता है कि हिमालय से निकलकर भारत आने वाली कोसी नदी, जो उत्तर दिशा से आकर दक्षिण दिशा में गंगा से मिलती है, अब दक्षिणपंथी से वामपंथी होने को व्यग्र है।
अब इसे राज्य सरकार की लापरवाही कहें, केन्द्र की लापरवाही कहें या नेपाल सरकार के मत्थे इसका दोष मढ़ दें, नेपाल में वामपंथियों की सरकार आते ही नेपाल से निकलने वाली कोसी वामपंथी हो गई है। दरअसल कोसी अपनी धारा परिवर्तन की प्रवृत्ति के कारण ही ‘बिहार का शोक’ कही जाती है।
हालांकि यह अवगुण उत्तर बिहार की हर नदियों में है किन्तु कोसी इसलिए बदनाम है कि वह अन्य नदियों की तुलना में विस्तृत भूभाग में तेजी से धारा परिवर्तन करती है। 1892 में मुरलीगंज के पास से बहने वाली कोसी 2008 में बांध टूटने के बाद फिर मुरलीगंज से होकर बहने लगी है। इस कारण मधेपुरा जिले के मुरलीगंज क्षेत्र में सबसे ज्यादा तबाही है। सहरसा जिले में स्थापित किसी भी बांध में आज आपको मुरलीगंज इलाके के सबसे ज्यादा बाढ़ पीड़ित मिलेंगे।
कुछ कही, कुछ सुनी
चर्चा का बाजार गर्म है कि जब भी बिहार सरकार में कोशी क्षेत्र का विधायक जल संसाधन मंत्री बनता है तो इलाके में भारी तबाही आती है। 1984 में हेमपुर गांव के पास पूर्वी तटबंध टूटा था।
यह गांव सहरसा जिले के नवहट्टा ब्लाक में आता है। उस समय कांग्रेस पाटी की सरकार थी और सिंचाई मंत्री थे सहरसा के महिसी विधानसभा क्षेत्र के विधायक लहटन चौधरी। 24 साल बाद 2008 में बांध टूटा है। इस समय जल संसाधन मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव हैं। ये भी कोसी क्षेत्र के सुपौल विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।