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साल के अंत तक चमड़ी उतारने लगा चर्म उद्योग

Last Updated- December 09, 2022 | 3:57 PM IST

साल की अच्छी शुरुआत के बाद इसका सीधा असर कानपुर और आगरा सहित देश के तमाम चमड़ा का कारोबार करने वाले कारोबारियों पर स्पष्ट रूप से नजर आया।


अमेरिका और यूरोपियन देशों से मिलने वाले निर्यात आर्डर में करीब 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। उत्पादन घटने की वजह से इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रशिक्षित कारीगर बेरोजगार हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के आगरा और कानपुर के चर्म उद्योग से प्रतिसाल करीब 4,500 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इसमें हर साल 20 प्रतिशत की रिकॉर्ड बढ़त भी दर्ज की जा रही थी, लेकिन इस साल की कहानी कुछ अलग ही रही।

मॉडल टनर्स के प्रोपराइटर मकसूद आलम बताते हैं कि यूरोप और अमेरिका से आने वाली मांग में जोरदार कमी दर्ज की गई है। यूरोप में हर तीन महीने में फैशन बदल जाता है और हमारे पहले से तैयार किए गए माल बेकार पड़ गए हैं, क्योंकि मुद्रा की विनिमय दर में लगातार बदलाव होने की वजह से ऑर्डर पर असर पड़ा है।

मिर्जा इंटरनेशनल के जनरल मैनेजर डीसी पांडेय का कहना है, ‘ब्याज दरें अधिक होने की वजह से विस्तार की योजनाएं प्रभावित हुईं। हमारे प्रतिस्पर्धी अमेरिका और जापान के लोग हैं जहां पर बगैर किसी ब्याज के कर्ज मिल रहा है और हम पर ब्याज दरें बढ़ाकर दबाव बनाया जाता रहा कि हम कर्ज न लें।’

उनकी यह भी शिकायत है कि  अगर सरकार हमको सुविधाएं और समर्थन नहीं उपलब्ध कराती है, तो हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों से किस तरह प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे?

कानपुर के बड़े उत्पादक और निर्यातक ताज आलम कहते हैं कि हमारे कारोबार में तेज गिरावट इसलिए भी आई क्योंकि हम गुणवत्ता विकास और मार्केटिंग जैसे कामों पर ध्यान नहीं दे पाए, जो सहभागिता के माध्यम से होता है।

कुछ इटालियन लेदर कंपनियों ने संयुक्त उपक्रम स्थापित करने की कोशिशें की थी, लेकिन मंदी की वजह से दोनो पार्टियों ने हाथ खींच लिया। कानपुर में 200 के करीब चर्म उद्योग की इकाइयां हैं, जिनमें से करीब 95 प्रतिशत छोटे और मझोले कारोबारी हैं।

आलम का कहना है कि ज्यादातर कंपनियों में अब कारोबार ठहराव पर है। ज्यादातर विदेशी खरीदारों ने फैक्टरियों से काम रोक देने को कहा है। गोदामों में माल पड़ा है। उत्पादकों ने इसे यूरोप और अमेरिका के स्तर के मुताबिक तैयार किया था, जिसकी भारत में मांग नहीं है।

एक और निर्यातक फारुख उमर कहते हैं कि पिछले 15-20 सालों में पहली बार इस साल इतने बुरे दौर का सामना करना पड़ा है। इस संकट की मूल वजह नकदी की कमी है। बैंकों से समय पर कर्ज न मिल पाने और तरह तरह के कागजों की मांग करने की वजह से बहुत दिक्कतें हुईं।

इस मंदी का बहुत ज्यादा असर कानपुर के जाजमऊ इलाके में देखा जा सकता है, जहां 150 के करीब फूटवीयर निर्माता रहते हैं।  पिछले महीनों में लगातार जो घाटा हुआ है उसकी वजह से कम से कम 15 कारोबारी दीवालिया हो चुके हैं,दर्जनों दीवालिया होने की कगार पर हैं।

First Published - December 30, 2008 | 8:47 PM IST

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