मंदी के समय में जब लोगों की नौकरियां जा रही हैं ऐसे में राज्य सरकार और बैंकों के बीच ‘स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना’ को लागू किए जाने को लेकर ठन गई है।
इस योजना को केंद्र सरकार प्रायोजित कर रही है। इसे केंद्र सरकार ने पिछली सरकार की नेहरू रोजगार योजना (एनआरवाई), प्रधानमंत्री एकीकृत शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम और गरीबों के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसी योजनाओं के बदले में शुरू किया था। लेकिन उसके बाद से ही इस परियोजना पर र्कोई काम नहीं हो पाया है।
राज्य स्तरीय बैंक समिति के संयोजक पी सी तिवारी ने बताया, ‘राज्य सरकार को सिर्फ बैंक संबंधी मामलें हमें भेजने चाहिए। सरकार हमें किराना दुकान, फल-सब्जी की दुकान और कुछ ऐसे ही मामलें भी भेजती हैं। ऐसे में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के मामले बढ़ने की आशंका ज्यादा रहती है।’
जबकि इसके उलट शहर प्रशासन ने राज्य स्तरीय बैंकरों की समिति में तस्वीर का दूसरा पहलू और दूसरे ही आंकड़े पेश किया है। मंदी के कारण अब इस समिति की अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे।
शहर प्रशासन विभाग के सचिव एस एन मिश्रा ने बताया, ‘सरकार की इस योजना और बाकी योजनाओं के लिए लगभग 150 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, और इसमें गैर निष्पादित संपत्ति होने की संभावना भी 0.1 फीसदी से कम है।’ इस योजना का मुख्य मकसद शहरी गरीबों, बेरोजगारों को रोजगार दिलाना और शहरों में सामुदायिक ढांचे को विकसित करना है।
बैंकरों ने इस योजना के तहत 26,413 आवेदनों में से मात्र 0.44 फीसदी लोगों को ही वित्तीय सुविधा मुहैया कराई है। हालांकि सितंबर 2008 में हालात सुधरे और बैंकों ने कुल आवेदनों के 2.12 फीसदी लोगों को यह सुविधा मुहैया कराई। समिति राज्य सरकार को अभी तक कम लोगों को सुविधा देने के मामले पर सफाई नहीं दे पाई है।