राष्ट्रमंडल खेलों के नजदीक आने के साथ ही भले दिल्ली की सूरत बदलने के लिए सरकार ने बड़ी-बड़ी योजनाओं में करोड़ों रुपये लगा दिये हो, लेकिन दिल्ली की आधे से ज्यादा आबादी झुग्गी-झोपड़ियों, अनाधिकृत और पुनर्वासित कालोनियों में अपना बसर कर रही है।
वन और पर्यावरण मंत्रालय के आंकडों के हिसाब से तो यमुना के दोनों किनारों में ही लगभग 30 लाख लोग रहते है। ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी समस्या से निपटने के लिए कुछ किया नहीं जा रहा है।
दिल्ली सरकार की अगुवा कई बार दिल्ली को 2010 तक झुग्गी-झोपड़ी से मुक्त विकसित शहर बनाने का भरोसा दिला चुकीं हैं। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने अनाधिकृत कालोनियों और झुग्गी-झोपझियों की समस्या से निबटने के लिए एक बोर्ड के गठन की बात कही है। इस बाबत दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति के अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता का कहना है कि सरकार द्वारा दिल्ली को 2010 तक झुग्गी-झोपड़ी मुक्त बनाने की बात कहना हवाईयां उड़ाने की तरह है।
गुप्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार का रुख काफी ढीला है। इसके अलावा जब से सरकार ने इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करना शुरु किया है, तब से एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) भी इस समस्या का समाधान ढूढ़ने में खुले हाथ होकर निर्णय नहीं ले पा रही है। इसके साथ ही झुग्गी-झोपड़ियों से एमसीडी को प्राप्त होने वाले राजस्व पर भी प्रभाव पड़ा है। इन झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाओं की शुरुआत की है।
इन योजनाओं में बिजली, पानी, और बुनियादी सुविधाओं को प्रदान करने वाली कई योजनाएं थी। इस बाबत गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि आज इन योजनाओं का कुछ अता-पता नहीं है। यहां तक की पिछले बजट में दिल्ली सरकार ने कमजोर वर्गो के लिए जिस तरह मकानों को उपलब्ध कराने की बात क ही थी, उसी का काम पूरा नहीं हो पाया है।
दिल्ली नगर निगम में पदस्थ एक उच्च अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि इतनी बड़ी-बड़ी योजनाओं को पूरा करना जादू की छड़ी घुमाने की तरह नहीं है। दूसरी बात यह है कि सरकार भी इन मुद्दों पर तब ही गौर करती है, जब इस तरह के मुद्दों के ऊपर सवाल उठाए जाते है। खास बात तो यह है कि 11वीं पंचवर्षीय योजना में अनाधिकृत कालोनियों के विकास के लिए 2,800 करोड़ रुपये तय किये गये है। इनमें 660 करोड़ रुपये वर्ष 2007-08 के लिए तय किये गये थे।
यही नही दिल्ली सरकार ने भी इन कालोनियों के जीर्णोद्धार के लिए कागजी तौर पर कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। एक अनुमान के अनुसार 1978 से 2002 के मध्य ही दिल्ली सरकार ने पुनवार्सित कालोनियों के जीर्णोद्धार के नाम पर ही लगभग 470 करोड़ रुपये खर्च कर डाले गए है।
दिल्ली सरकार ने पिछले साल के अपने बजट में कमजोर वर्गों को 26 हजार मकान और संस्थागत कामगारों को डीएसआईआईडीसी, डीडीए और एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के द्वारा प्रदान करवाने की योजना बनाई थी।