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कर्नाटक के मराठी भाषी इलाकों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए : ठाकरे

Last Updated- December 12, 2022 | 9:11 AM IST

महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद एक बार फिर गरमाने लगा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मांग की है कि उनके राज्य की सीमा से लगते कर्नाटक के मराठी भाषी बहुल इलाकों को उच्चतम न्यायालय का अंतिम फैसला आने तक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाना चाहिए। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद पर लिखी किताब का विमोचन करने के मौके पर उद्धव ठाकरे ने कर्नाटक सरकार की उन इलाकों में रह रहे मराठी भाषी आबादी पर कथित अत्याचार को लेकर आलोचना की।
उद्धव ठाकरे ने कहा कि जब मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में चल रही है, कर्नाटक ने बेलगाम का नाम बदलकर उसे अपनी दूसरी राजधानी घोषित कर दिया और वहां विधानमंडल की इमारत का निर्माण किया तथा विधानमंडल का सत्र आयोजित किया। उन्होंने कहा कि यह अदालत की अवमानना है। कर्नाटक द्वारा कब्जा किए गए मराठी भाषी इलाकों को उच्चतम न्यायालय का अंतिम फैसला आने तक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाना चाहिए। हमने पिछले अनुभवों से सीखा है और जीतने के लिए लड़ेंगे। कर्नाटक द्वारा कब्जा किए गए मराठी भाषी इलाके महाराष्ट्र में शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र बेलगाम, करवार और निप्पनी सहित कर्नाटक के कई हिस्सों पर दावा करता है। उसका तर्क है कि इन में बहुमत आबादी मराठी भाषी है। यह मामला कई वर्षों से उच्चतम न्यायालय में लंबित है।
मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि स्वार्थपरक राजनीतिक फायदे के लिए मराठी के मुद्दों को कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले एमईएस के आधे दर्जन विधायक जीते, बेलगाम का महापौर मराठी भाषी है। शिवसेना कभी बेलगाम की राजनीति में नहीं घुसी, क्योंकि वह एमईएस को कमजोर नहीं करना चाहती थी। ठाकरे ने कहा कि कानूनी लड़ाई को समयबद्ध तरीके से जीतने की योजना बनाने की जरूरत है और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि कर्नाटक में मराठी भाषी जनता और नेता एकजुट हों। हम शपथ लें कि जब तक जीतेंगे नहीं, आराम नहीं करेंगे। अगर लंबित मुद्दे इस सरकार (एमवीए की) के कार्यकाल में नहीं सुलझे, तो कभी नहीं सुलझेंगे। उद्धव ठाकरे ने आरोप लगाते हुए कहा कि कर्नाटक में किसी भी पार्टी की सरकार या मुख्यमंत्री हो, उनकी एक समानता होती है और वह है मराठी लोगों और भाषा पर अत्याचार।
राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने इस मौके पर कहा कि जब महाराष्ट्र के नेता सेनापति बापट ने भूख हड़ताल शुरू की, तो केंद्र द्वारा 1960 के दशक में मामले के अध्ययन एवं निष्कर्ष के लिए महाजन आयोग की स्थापना की गई। महाराष्ट्र के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक ने आयोग को स्वीकार किया और इस बात पर सहमत हुए कि आयोग का निष्कर्ष राज्य के लिए बाध्यकारी होगा, लेकिन आयोग की रिपोर्ट शत-प्रतिशत महाराष्ट्र के खिलाफ रही।
पूर्व मुख्यमंत्री बैरिस्टर एआर अंतुले ने अपनी किताब में महाजन आयोग की रिपोर्ट अस्वीकार करने के बारे में लिखा है। पवार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय राज्य के लिए आखिरी हथियार है और महाराष्ट्र को इस मुकदमे में जीत के लिए सभी कानूनों विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें लड़ना होगा। कोई दूसरा विकल्प नहीं है। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री ठाकरे इस दिशा में नेतृत्व कर रहे हैं। महाराष्ट्र को अपने राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर इस मामले में एकजुटता दिखाने की जरूरत है।
‘महाराष्ट्र- कर्नाटक सीमा विवाद, संघर्ष‍और संकल्प’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर महाराष्ट्र के एक दर्जन से ज्यादा मंत्री और अधिकारी मौजूद थे। किताब के संपादक डॉ. दीपक पवार ने कहा कि यह पुस्तक सीमाक्षेत्र समेत संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन का हथियार हो, यही उम्मीद करता हूं।
 

First Published - January 27, 2021 | 11:44 PM IST

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