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मानसून आया, न आई खाद

Last Updated- December 07, 2022 | 5:42 AM IST

चावल का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में खाद की जबरदस्त किल्लत है। सरकार को यह समझ में नहीं आ रहा है कि खाद की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को कैसे पाटा जाए।


हालांकि इस दिशा में फौरी कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने राज्य में तैयार सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) की दूसरे राज्यों में बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार का कहना है कि जब तक छत्तीसगढ़ में किसानों को जरुरत भर खाद नहीं मिल जाती है तब तक अन्य राज्यों में खाद की आपूर्ति नहीं की जाएगी।

अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) सर्जियस मिंज ने बताया, ‘अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि सरकार द्वारा जारी घोषणा को अमल में लाया जाए।’ वर्तमान में छत्तीसगढ़ के पास दो एसएसपी उत्पादन इकाइयां हैं। प्रत्येक इकाई 1,10,000 टन उत्पादन क्षमता वाली है। सूत्रों का कहना है कि इन इकाइयों से ज्यादातर माल उड़ीसा और महाराष्ट्र भेजा जाता है, जहां निर्माता ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।

हालांकि अगर सरकार राज्य में मौजूद खाद स्टॉक का पूरा इस्तेमाल भी कर लेती है तो इसके बावजूद वह मात्रा अपर्याप्त ही रहेगी। खाद की मांग को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने साल 2008 के खरीफ फसल केलिए 5,34,600 टन खाद का वितरण करने का लक्ष्य रखा है। इसमें 2,75,340 टन यूरिया, 81000 टन डाइ अमोनियम फास्फेट (डीएपी) और 78000 टन अन्य उर्वरक शामिल है।

हालांकि राज्य सरकार ने जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसका आधा फीसदी माल भी राज्य विपणन संघ के पास नहीं है। राज्य में खाद वितरण का काम विपणन संघ द्वारा ही किया जाता है। विपणन संघ के पास मौजूदा मांग की पूर्ति के लिए सिर्फ 238904 टन ही खाद है। इस वक्त संघ केपास 178836 टन यूरिया, 26184 टन डीएपी और 10465 टन एसएसपी ही स्टॉक में है।

राज्य विपणन संघ के प्रबंध निदेशक दिनेश श्रीवास्तव ने चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘राज्य में खाद समस्या दिनों-दिन विकट होती जा रही है।’ साथ ही श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि आवश्यक जरूरतों के लिए सरकार खाद की व्यवस्था कर रही है ताकि किसानों को किसी तरह की परेशानी न हो। छत्तीसगढ़ स्थित खाद सहकारी समिति के प्रबंधक आर के चंद्रकर ने बताया कि साल 2008 केलिए खरीफ फसलों की खेती में जैसे-जैसे तेजी आती जाएगी वैसे-वैसे राज्य में खाद की समस्या नियंत्रण से बाहर होती जाएगी।

दुर्ग जिले के व्यापारी आनंद पाण्डेय ने बताया, ‘अगर हम लोग सब्सिडी दरों पर खाद की बिक्री करते हैं तो महज तीन-चार महीनों में ही मूल्यों में साफ अंतर नजर आने लगेगा।’ पाण्डेय ने पिछले दो साल से अपने ऑउटलेट में खाद की बिक्री बंद कर दी है। किसान खाद की खरीदारी राज्य सरकार द्वारा संचालित समितियों से ही कर रहे हैं।

अगर सरकार के पास खाद का पर्याप्त स्टॉक है और उससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है तो यह सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। यहां के किसानों को उनके पसंद की खाद नहीं मिल पा रही है। रायपुर जिले में स्थित चड़ौदा गांव के एक किसान राम प्यारे साहू ने बताया, ‘करीब दो सालों से हम लोगों को एसएसपी नहीं मिली है।’
भाग तीन में जानेंगे हरियाणा का सूरत-ए-हाल

First Published - June 15, 2008 | 10:57 PM IST

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