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जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए नई तकनीक

Last Updated- December 06, 2022 | 12:45 AM IST

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और हरकोर्ट बटलर टैक्ोलॉजिकल इंस्टीटयूट (एचबीटीआई) ने प्राकृतिक संसाधन जल के प्रदूषण को रोकने के लिए एक नई तकनीकि को ईजाद किया है।


यह नई तकनीकि आईआईटी कानपुर के  पर्यावरणीय इंजीनियर विनोद तारे ने सैन सिस्टम तकनीक के आधार पर विकसित की है। इस तकनीक में प्रदूषण को रोकने के लिए जीरो डिस्चार्ज सिद्वांत का प्रयोग किया जाएगा।


इस तकनीक में टायलेट में प्रयोग किये जाने वाले पानी को सफाई के बाद पुन: प्रयोग किया जा सकता है। इसमें अपशिष्ट पदार्थ के ठोस और तरल भाग को अलग-अलग टैकों में एकत्रित कर लिया जाएगा। इन टैंको में जमा ठोस अपशिष्ट को खाद और तरल अपशिष्ट  को तरल उर्वरक के रुप में विकसित किया जा सकेगा। इसके लिए टायलेट सीट के नीचे पानी को अलग करने के लिए एक यंत्र लगाया जाएगा।


तारे के अनुसार वर्तमान में टायलेट में अपशिष्ट को साफ करने के लिए स्वचछ पानी का प्रयोग किया जाता है। शहरों के सीवरों से नदी में जाने वाले पानी का लगभग 90 फीसदी हिस्सा बिना किसी दोहन के ही नदियों में पहुचाया जाता है, जो जल प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है। इस तकनीकि से न केवल जल प्रदूषण को रोका जा सकेगा साथ ही श्रम और पूंजी के अतिव्यय को भी रोका जा सकेगा।


तारे और उनके छात्रों द्वारा निर्मित की गई इस तकनीकि को भारतीय रेल द्वारा मंजूरी प्रदान कर दी गई है और रेलवे अपनी आगामी परियोजना में इसका इस्तेमाल करने वाला है। इस बाबत डॉ तारे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस तकनीकि का सबसे पहला प्रयोग चेन्नई और त्रिवेन्द्रम रेलवे के मध्य किया जाएगा। इसके अलावा यूनीसेफ भी इस तकनीकि के लिए आईआईटी से संपर्क  कर रहा है।


इसके अलावा जल क्षेत्रों में प्रदूषण की दर को नापने के लिए  एचबीटीआई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख दीपेश सिंह ने एक कंप्यूटर प्रोग्राम का निर्माण किया है। इससे किसी क्षेत्र में उपस्थित जल क्षेत्रों में प्रदूषण की जांच की जा सकेगी और समय-समय पर बदल रहें प्रदूषण के आंकड़ो को भी दिखाया जा सकेगा।


दीपेश सिंह ने बताया कि इस तकनीकि से बिना किसी यंत्र की सहायता के किसी स्थान में जल की गहराई को भी नापा जा सकता है। अभी तक जल प्रदूषण को जांचने के लिए ट्रायल और एरर तकनीकि का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड ने भी इस तकनीकि को रायबरेली के 9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगाने के लिए भी रुचि दिखाई है।

First Published - April 30, 2008 | 10:20 PM IST

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