अब रियल एस्टेट, कमोडिटी और बुनियादी ढांचे की खबरों के लिए आपको खबरिया चैनलों का मोहताज नहीं होना पडेग़ा।
आने वाले समय में रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचे की विशेष खबरों के लिए अलग से चैनलों की शुरुआत की जा रही है। इनमें से कुछ ने अपना प्रसारण शुरु भी कर दिया जबकि कुछेक पाइपलाइन में है।
मीडिया विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में किसी खास वर्ग या श्रेणी (जैसे रियल एस्टेट और इन्फ्राट्रक्चर के लिए खास समाचार पत्र और टीवी)से संबधित समाचार पत्रों की संख्या अधिक होगी।
अनुमानों के अनुसार आज भारतीय मीडिया लगभग 600 अरब रुपये का कारोबार कर रहा है। लेकिन मीडिया में बिजनेस सेंगमेट के जुड़ने के पश्चात 2010 के अंत तक इसके 8 खरब रुपये तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। बाजार विश्लेषकों का मानना है कि मीडिया में आ रहा इस तरह का बूम निश्चित तौर पर भारत की फैलती अर्थव्यवस्था का परिणाम है।
इस बाबत मीडिया विश्लेषक आनंद प्रधान कहते है कि भारत में बढ़ते व्यापार की खबरों को देने के लिए जिस तरह के मीडिया की उत्पति हो रही है,वह नीश मीडिया का रुप है। नीश मीडिया में खबरों का निर्माण एक खास वर्ग के लिए किया जाता है। यह वर्ग वही होता जो दी जा रही खबर से सीधे तौर पर प्रभावित हो और उसमें रुचि रखता हो। इस तरह की मीडिया की उत्पति का कारण कारोबारी द्वारा चयनित विज्ञापन है।
आज कारोबारी ऐसी जगह विज्ञापन नहीं देना चाहता जहां उसे अपने विज्ञापन से संबधित लक्षित समूह प्राप्त न हो पाए। इस बाबत रियल एस्टेट चैनल के प्रोडयूसर प्रशांत का कहना है कि आज रियल एस्टेट अपने आप में ही एक बहुत बड़ा बाजार है। इसलिए रियल एस्टेट सेक्टर के लिए भारतीय मीडिया बाजार में अलग से एक टीवी चैनल लाना काफी अच्छा कदम है। हमारा चैनल 24 घंटे का प्रसारण करता है। इसमें न्यूज कम प्रोगामों को प्रसारित किया जाता है।
हमारा लक्षित समूह आम आदमी और निम्न आय वर्ग नहीं है। इसलिए प्रसारण के लिए बनाए जाने वाले प्रोग्राम मुख्य तौर पर लक्षित समूह को घ्यान में रखकर बनाए जाते है। हमारा लक्ष्य आने वाले समय में कुछ प्रोग्रामों को निम् आय वर्ग के लोगों के लिए भी शुरु करना है। गौर किया जाए तो भारत में मीडिया का कारोबार 20 फीसदी की वृद्धि दर से विकसित हो रहा है।
नीस मीडिया के प्रभाव से आने वाले वर्षो में इसके और बढ़ने की भी उम्मीद की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी का मानना है कि इस तरह के चैनल मुख्य तौर पर उन्हीं क्षेत्रों में आना चाहते है जहां पैसा हो। इस तरीके से मीडिया के बाजारीकरण को बढ़ावा मिलेगा। मीडिया विश्लेषक आलोक पुराणिक मानते है कि मीडिया में इस तरह का बूम निश्चित तौर पर देश में होते विकास की कहानी कहता है।
क्योंकि मीडिया कारोबार में वृद्धि विज्ञापन पर निर्भर करती है और ज्यादा संख्या में विज्ञापनों का आना तेजी से हो रहें आर्थिक विकास का परिणाम है। पुराणिक ने कहा कि हालांकि देश में व्यापारिक खबरों की समझ रखने वाला सबसे बड़ा अंग्रेजी वर्ग है। अंग्रेजी भाषी वर्ग काफी समय से आर्थिक मुद्दो में रुचि रखता आया है। इसके अलावा हिन्दी भाषी वर्ग ने अपनी आर्थिक जानकारी को खबरों के सहारे बढ़ाना जल्द ही शुरु किया है।