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चुनावी साल में आई अब डंकन की बारी

Last Updated- December 08, 2022 | 10:47 AM IST

लगता है अगले आम चुनाव इस शहर के बेराजगार व छंटनी के शिकार हुए लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आ रहे हैं।


कुछ हफ्तों पहले कानपुर की जूट और कपड़ा मिलों के उद्धार के लिए पैकेज की घोषणा के बाद औद्योगिक और वित्तीय पुनर्संरचना बोर्ड (बीआईएफआर) ने शहर की बंद पड़ी डंकन की उर्वरक मिल के लिए 430 करोड़ रुपये के एक और पैकेज की सिफारिश की है।

कंपनी प्रबंधन को निर्देश दिया गया है कि वह मजदूरों के बकाया जैसे मसलों पर सहमति बनाए। कंपनी की माली हालत के उध्दार के पैकेज का संदर्भ पत्र हाल में भारतीय स्टेट बैंक ने मंजूर कर लिया और इसे कारपोरेट ऋण पुनर्संरचना सेल (सीडीआर) को भेज दिया। सीडीआर ने विभिन्न बैंकिंग संस्थाओं के बकाया को चुकाने के लिए 225 करोड़ रुपये की राशि रखी है।

इसके अलावा सेल के पास बकाया मजदूरी के भुगतान और संयंत्र के उन्नयन के लिए 205 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड भी मौजूद है। इसबीच मजदूर संगठन सीटू ने केंद्र सरकार से नैफ्था आधारित उवर्रक संयंत्र डंकन को फिर से खोलने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कहा है।

सीटू ने कहा है कि डंकन को नैफ्था के आयात शुल्क से छूट मिलनी चाहिए। सीटू के प्रवक्ता एम के पंधे ने बताया कि ‘सरकार को कानपुर में डंकन, गोरखपुर में एफसीआई के उवर्रक संयंत्र और बरौनी संयंत्र को फिर से खोलना चाहिए।’

डंकन के मामले में बीआईएफआर में अगली सुनवाई 15 जनवरी को होगी। इस दौरान केंद्र सरकार को पनकी संयंत्र के पुनरुद्धार का निर्देश दिया जा सकता है। डंकन ने 90 के दशक में आईसीआई लिमिटेड से पनकी संयंत्र खरीदा था।

डंकन में तैयार खाद को ‘चांद छाप यूरिया’ ब्रांड नाम से बेचा जाता था। पनकी संयंत्र की उत्पादन क्षमता 7.22 लाख टन है। कंपनी के प्रवर्तकों ने संयंत्र में ताजा निवेश का आश्वासन दिया है और बैंक तथा विदेशी निवेशकों ने भी डंकन की मदद का आश्वासन दिया है।

कंपनी की खाद इकाई नैफ्था आधारित संयंत्र में यूरिया बनाती है और इसकी बिक्री डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट और एनपीके ग्रेड खाद तहत की जाती है।

भारतीय टे्रड यूनियन (बीटीयू) के एक स्थानीय नेता ने इस बीमारू संयंत्र के लिए घटी दरों पर नैफ्था उपलब्ध कराने की मांग की, ताकि देश में यूरिया की कमी को पूरा किया जा सके।

पंधे ने बताया कि ‘नैफ्था की कीमतों में कमी के कारण यह लागत के लिहाज से आयातित एनएनजी और आयातित यूरिया के मुकाबले काफी आकर्षक विकल्प बन गया है।’ एक अनुमान के मुताबिक इस साल देश में 70 लाख टन यूरिया का आयात किया जाएग।

उन्होंने बताया कि नैफ्था की आपूर्ति के लिए बिजली संयंत्रों के मुकाबले खाद संयंत्रों को तरजीह मिलनी चाहिए। डंकन संयंत्र को मार्च 2002 में बंद किया गया था।

हालांकि इसके बाद जून 2005 में संयंत्र को एक बार फिर खोला गया लेकिन छह महीने के अंदर ही संयंत्र फिर से बंद हो गया।

एसबीआई कैपिटल मार्केटस के मुताबिक देश में खाद की बढ़ी हुई कीमतों को देखते हुए संयंत्र को फिर से शुरू करना फायदे का सौदा होगा।

इस बीच कार्पोरेट ऋण पुनर्संरचना दल ने डंकन इंडस्ट्रीज के लिए ऋण पुनर्संरचना पैकेज को मंजूरी दे दी है। दल ने 60 करोड़ रुपये का ताजा कर्ज देने पर भी सहमति दिखाई है।

First Published - December 23, 2008 | 8:58 PM IST

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