बारिश और बाढ़ के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती इलाकों को दिमागी बुखार, मलेरिया और आंत्रशोथ जैसी बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया है।
अब तक इन बीमारियों से तकरीबन 500 लोगों की मौत हो चुकी है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए गोरखपुर में राज्य के आला अधिकारियों की बैठक हुई है। बैठक के बाद राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशक आई एस श्रीवास्तव ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन बीमारियों को महामारी बनने से रोकने के लिए प्रशासन को सतर्क रहने को कहा गया है।
स्वास्थ्य महानिदेशक ने बताया कि गोरखपुर, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया और बिहार के सीमावर्ती जिले इन बीमारियों की चपेट में हैं। गौरतलब है कि ये जिले फिलहाल बाढ़ की भीषण विभीषिका से जूझ रहे हैं। गोरखपुर में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक में स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य महानिदेशक सहित इन जिलों के जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी शामिल हुए।
श्रीवास्तव ने बताया कि अब तक जलजमाव से होने वाली बीमारी जापानी इंसेफलाइटिस से 200 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मृतकों में गोरखपुर इलाज कराने आए बिहार के लोग भी हैं। एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की चपेट में कुल 1,014 लोग आए हैं। ज्यादातर मरीज और मृतक 15 साल तक की उम्र के हैं।
उन्होंने बताया कि यह बीमारी गांवों को ज्यादा प्रभावित कर रही है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है ना ही अच्छे स्वास्थ्य इंतजाम हैं। जापानी इंसेफलाइटिस से बचने के लिए किए जा रहे उपायों के बारे में उन्होंने बताया कि लगभग 1 करोड़ लोगों को चीन में टिश्यू कल्चर से तैयार होने वाले टीके लगाए गए हैं।
उनका दावा है कि ये बीमारी केवल उन्हीं लोगों को हुई है जिन्हें टीका नहीं लगाया जा सका है। सूत्रों के अनुसार, राज्य में इस तरह के टीके की कोई कमी नहीं है। असली समस्या इन टीकों को 15 साल तक की उम्र के सभी बच्चों को अनिवार्य तौर पर लगाना है।
जानकारों के मुताबिक, पिछले 30 सालों से उत्तर प्रदेश के इन पूर्वी जिलों में हर साल जापानी इंसेफलाइटिस से सैकड़ों मौतें हो जाना आम बात है। इस आपदा की मुख्य वजह स्वास्थ्य सुविधाओं का लगभग नदारद होना, साफ-सफाई के प्रति लोगों की उदासीनता और कुपोषणहीनता है।