हिमाचल प्रदेश के बद्दी जैसे क्षेत्रों की दवा इकाइयां जल्द ही कानूनी तौर पर 150 से अधिक फिक्स्ड डोज कॉबिनेशन (एफडीसी) दवाएं तैयार कर सकेंगी।
इस दवाओं की देश भर में करीब 3,000 करोड़ रुपये की बिक्री का अनुमान है। एफडीसी में दो या दो से अधिक ऐसी दवाएं होती हैं जिन्हें सामान्य तौर पर अलग अलग खाया जाता है। इस तरह मरीजों को ढ़ेर सारी गोलियां खाने के झंझट से छुटकारा तो मिलेगा। इसके साथ ही दवाएं अधिक असरकारक होंगी।
हिमाचल प्रदेश की दवा इकाइयों के लिए कारोबार के अवसर इसलिए भी बढ़ गए हैं क्योंकि कुछ विशेषज्ञों द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद केंद्रीय दवा नियामक ने दो साल पहले चुनिंदा एफडीसी के लिए नए लाइसेंस जारी करने पर पाबंदी लगा दी थी। इससे पहले कर छूट का लाभ लेने के लिए हिमाचल प्रदेश में कई दवा इकाइयों की स्थापना की गई थी।
एफडीसी के तहत पैरासीटामॉल, एमोक्सीसिलीन और डिक्लोफिनैक जैसी दवाओं को मिलाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में ज्यादातर इकाइयां पिछले तीन से चार वर्षो के दौरान आई हैं। ऐसे में नए लाइसेंस पर प्रतिबंध लगाने से ठीक पहले इन इकाइयों को पांच साल के लिए लाइसेंस मिल गया।
ये कंपनियां कम से कम अगले दो वर्षो तक इन दवाओं का उत्पादन जारी रख सकतीं हैं। दूसरी ओर दवा नियामक द्वारा लाइसेंस का नवीनीकरण करने से इनकार करने के बाद देश के दूसरे हिस्सों में दवा कंपनियों ने एफडीसी दवाओं का उत्पादन बंद कर दिया है।
पंजाब दवा विनिर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष जगदीप सिंह ने बताया कि भारत के दवा महानियंत्रक के कार्यालय के फैसले से उन्हें नुकसान हो रहा है क्योंकि पड़ोस के राज्यों में विनिर्माता कर छूट के साथ उत्पादों की विशेष श्रृंखला पेश कर पा रहे हैं।