आर्थिक मंदी की मार से कानपुर का प्लास्टिक उद्योग भी बच नहीं पाया है। प्लास्टिक उत्पादों की घरेलू मांग घटने से प्लास्टिक उत्पाद बनाने वाले शहर के करीब 50 उत्पादकों की हालत पस्त है।
शहर में प्लास्टिक उत्पाद का कारोबार करीब 250 करोड़ रुपये का है और इससे करीब 2,000 मजदूर जुड़े हुए हैं। इन सब पर मौजूदा मंदी का सीधा असर पड़ेगा। हालात बिगड़ने के बाद से ही उत्पादन 40 फीसदी तक घटाया जा चुका है और सैकड़ों मजदूरों की छंटनी हो चुकी है।
पर अब उद्योग जगत में इस बात को लेकर चिंता बनी हुई है कि अगर आने वाले दिनों में भी मांग नहीं बढ़ती है तो कई उत्पादन इकाइयों पर ताला जड़ना पड़ सकता है।
शहर के प्लास्टिक उद्योग में स्थानीय उद्योग कर्मियों ने 80 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई थी, पर अगर हालात नहीं सुधरते हैं तो फिलहाल इस राह में भी अड़चनें आ सकती हैं।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्लास्टिक उत्पादन बनाने और उन्हें बेचने वाली कंपनी शिव पॉलीप्लास्ट प्राइवेट लिमिटेड को पिछले दिनों बिक्री में जबरदस्त कमी देखने को मिली है।
स्थानीय कारोबारी और रिटेलरों के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस वर्ष प्लास्टिक उत्पादों की मांग 40 से 45 फीसदी घटी है। कंपनी के निदेशक सत्य प्रकाश गुप्ता ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमें घटती मांग की वजह से उत्पादन 50 फीसदी घटाना पड़ा है।’
वहीं एक दूसरे प्लास्टिक उत्पाद राकेश गुप्ता ने बताया कि डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार जारी उतार चढ़ाव से भी प्लास्टिक उत्पादों का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। विनिमय दर में अनिश्चितता की वजह से प्लास्टिक उत्पादक अपने बकाये भुगतान को लेकर परेशान हैं।
उन्होंने बताया कि ग्राहक बकाये का भुगतान बढ़ी हुई दरों पर नहीं करना चाह रहे हैं। शहर के पनकी और फजलगंज जैसे इलाकों में छोटे और मझोले आकार की 100 से अधिक प्लास्टिक उत्पादन इकाइयां हैं।
पिछले कुछ महीनों के दौरान कच्चे माल की कीमतें भी काफी घटी हैं। आमतौर पर उत्पादकों के लिए यह अच्छी खबर होती है पर फिलहाल उपभोक्ता रुक कर कीमतों के और घटने का इंतजार कर रहे हैं।
उन्होंने फिलहाल अपने इस्तेमाल को कम करना शुरू कर दिया है और स्वाभाविक है कि उत्पादन इकाइयों का खर्च भी बढ़ेगा।
अखिल भारतीय प्लास्टिक उत्पादन संगठन के अध्यक्ष कैलाश मोरारका ने बताया कि मौजूदा हालात ने न केवल प्लास्टिक उत्पादन इकाइयों को नुकसान पहुंचाया है बल्कि, रिलायंस और हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स जैसी कंपनियां जो कच्चे माल का उत्पादन करती हैं, उन पर भी मार पड़ी है।
उन्होंने कहा कि चाहे वह घरों में इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक के उत्पाद हों या फिर पैकेजिंग उत्पाद, पिछले दो महीनों में सबकी मांग 40 से 60 फीसदी घटी है। शहर के प्लास्टिक कारोबार से करीब 2,000 मजदूर जुड़े हैं।
भारतीय उद्योग संगठन के कानपुर क्षेत्र के अध्यक्ष सुनील वैश्य ने कहा कि मुश्किल हालात की वजह से कुछ मजदूरों को नौकरी से निकाला जा चुका है। हालांकि उन्होंने साफ तौर पर यह नहीं बताया कि ऐसे मजदूरों की संख्या कितनी होगी।
करीब 250 करोड़ रुपये का है प्लास्टिक उद्योग
उद्योग से चल रहा है 2,000 मजदूरों का घर
मांग में आई है 40 से 45 फीसदी की कमी
80 करोड़ रुपये के निवेश पर लगा ग्रहण