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राजस्थान की रोजगार गारंटी पर सवाल

Last Updated- December 11, 2022 | 6:43 PM IST

राजस्थान की शहरी रोजगार गारंटी योजना में अन्य राज्यों के विस्थापित श्रमिकों के लिए सिर्फ आपातकालीन स्थिति जैसे कोविड या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में काम मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कुछ सवाल उठाए हैं।
इस योजना के तहत शहरी श्रमिकों को न्यूनतम 100 दिन का रोजगार मुहैया कराया जाता है। इसके लिए राज्य सरकार जन आधार कार्ड बनाती है और पात्रता के दस्तावेज लेने के बाद इस कार्यक्रम में पंजीकरण होता है।
ज्यादा संख्या में जन आधार कार्ड बनाने के लिए राज्य सरकार 1 मई से अभियान चला रहा है। योजना के लिए कुछ दिन पहले विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए
गए थे।
‘इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना’ के नाम से राज्य ने प्रति वर्ष 800 करोड़ रुपये के भारी आवंटन के साथ कार्यक्रम चलाने की योजना बनाई है। शहरी रोजगार योजना के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा आवंटन है।
साथ ही योजना के तहत शहरी स्थानीय निकायों जैसे इंजीनियरों और कंप्यूटर ऑपरेटरों जैसे मानव संसाधनों को मजबूत करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं। अन्य शहरी रोजगार योजनाओं में इसकी कमी है।
बहरहाल सामाजिक कार्यकर्तों का कहना है कि जिन प्राथमिक दस्तावेजों के आधार पर पंजीकरण हो रहा है, वह केवल निवासियों को जारी किया जाएगा, जो राजस्थान में कम से कम 6 महीने से रह रहे हों। या ऐसे व्यक्ति को  जारी किया जाएगा, जो कम से कम 6 महीने रहने को इच्छुक हो। उनका कहना है कि इसमें दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों की जरूरतों तक कुछ मामले में ध्यान रखा गया है।
सोशल एकाउंटिबिलिटी फोरम फार ऐक्शन ऐंड रिसर्च (सफर) की रक्षिता स्वामी ने कहा, ‘किसी दूसरे राज्य से आकर काम करने वालों के लिए इस तरह का दस्तावेज जुटा पाना कठिन काम होगा। हमें लगता है कि केवल आपातकालीन स्थितियों में बाहरी श्रमिकों के पंजीकरण का प्रावधान अपने आप में व्यवधान है।’
सफर एक सामाजिक संगठन समूह है, जो शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम को लेकर विभिन्न राज्यों में लड़ाई लड़ रहा है। स्वामी ने कहा कि दूसरा मसला दिशानिर्देश का है, जो एक राज्य से दूसरे राज्य में आने जाने वाले श्रमिकों के लिए व्यवधान बन सकता है।

First Published - May 25, 2022 | 12:47 AM IST

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