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हरियाणा में स्थानीय लोगों को आरक्षण

Last Updated- December 15, 2022 | 5:09 AM IST

हरियाणा अब भारत के उन आधे दर्जन राज्यों में शामिल हो गया है, जहां उद्योग को स्थानीय लोगों की नियुक्ति अनिवार्य है। अभी इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जाना है, लेकिन सरकार ने उस अध्यादेश पर कैबिनेट की मंजूरी ले ली है, जिसमें निजी क्षेत्र के रोजगार में हरियाणा के स्थानीय निवासियों के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया है।
हरियाणा की फैक्टरियों से विस्थापितों की वापसी और महामारी के बीच हरियाणा स्टेट इंप्लाइमेंट आफ लोकल कैंडीडेट्स ऑर्डिनेंस 2020 का असर यह होगा कि अब हरियाणा के बाहर के लोगों की राज्य में नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी।  हरियाणा विस्थापित श्रमिकों की कमी का लाभ उठा रहा है और स्थानीय श्रम बल को निजी क्षेत्र में रोजगार के लिए पेशकश कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला दोनों ने ही चुनावी घोषणापत्र में स्थानीय लोगों को  नौकरियों में आरक्षण देने का वादा किया था। यह नियम नई इकाइयों पर लागू होगा, न कि मौजूदा इकाइयों पर, लेकिन सरकार को उम्मीद है कि यह हरियाणा के निवासियों को रोजगार देने की दिशा में बड़ा कदम है।
भारत के कई अन्य राज्यों में भी इस तरह का आरक्षण दिया गया है, लेकिन इसकी सफलता अलग अलग है। गुजरात ने 1985 में निजी क्षेत्र में 85 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान दिया था और कर्मचारी की श्रेणी और सुपरवाइजर स्तर पर 90 प्रतिशत से ज्यादा स्थानीय लोग नौकरी करते हैं। कांग्रेस नेता कमलनाथ की सरकार ने मध्य प्रदेश में स्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र में 70 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया था। लेकिन राज्य के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने प्रस्ताव का स्वागत करते हुए इसकी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा था, ‘मैं कोटा के प्रावधान का व्यक्तिगत रूप से स्वागत करता हूं। हमने अपनी सरकार के कार्यकाल में 50 प्रतिशत कोटा लागू करने की कवायद की थी। लेकिन निवेश लाने की हमारी औद्योगिक नीति हिस्सा के रूप में यह लागू नहींं हो सका। कुशल और तकनीकी मानव संसाधन से जुड़ी कुछ दिक्कतें हैं।’
आंध्र प्रदेश ने पहले ही इस तरह का कानून लागू कर दिया है और राजस्थान 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को आरक्षण देने पर विचार कर रहा है।
इसकी वजह से बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों खासकर आतिथ्य क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम कर रहे पूर्वोत्तर के विस्थापित लोगों की नौकरियों की चिंता बढ़ गई है।
इस साल फरवरी महीने में कर्नाटक सरकार ने कानून का मसौदा तैयार करने की कवायद की थी, जिसमें निजी उद्योगों सहित विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना अनिवार्य था। हालांकि यह सभी उद्योगों पर नहीं लागू होना था। कर्नाटक इंप्लाइमेंट आफ  लोकल कैंडीडेट्स इन फैक्टरीज शॉप्स, कमर्शियल स्टेबलिशमेंट्स, एमएसएमई ऐंड ज्वाइंट वेंचर्स बिल में उन लोगोंं को स्थानीय के रूप में परिभाषित किया गया है, जो कर्नाटक में 15 साल से रह रहे हों और उन्हें कन्नड़ पढऩे, लिखने व बोलने आता हो।

First Published - July 8, 2020 | 12:05 AM IST

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